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________________ धर्म-कर्म - रहस्य ११८ आता है तो कर्ता को जड़ से उखाड़के नाश कर देता है ॥ १७२ ॥ अधर्म करने का फल यदि उसके करनेवाले को (इस संसार में ही ) न हुआ तो उसके पुत्र को होगा, यदि उसको भी नहीं हुआ तो प्रपौत्र को होगा, किन्तु किया हुआ अधर्म कदापि विना फल दिये न रहेगा ||१७३ || अधर्म से प्रारम्भ में कुछ उन्नति करता है, तब अभिलषित वस्तु भी प्राप्त करता तत्पश्चात् अपने से निर्वल शत्रुओं को भी जीतता है किन्तु अन्त में मूल सहित नाश हो जाता है ।। १७४ ॥ प्राचीन और आधुनिक इतिहास और वर्तमान की घटना पर भी दृष्टिपात करने से यह स्पष्ट प्रतीत होगा कि मनु का यह कथन, कि धर्म से प्रारम्भ में कुछ सांसारिक लाभ देखने में आ सकते हैं किन्तु उसका अन्तिम परिणाम सर्वनाश ही है, परम सत्य है और यह नियम सब समय और युग के लिये है और आजकल भी वैसा ही प्रवल है । और भी लिखा है कि एक एव सुहृद्धम्मों निधनेऽप्यनुयाति यः । शरीरेण समं नाशं सर्व्वमन्यद्धि गच्छति ॥ धम्मं शनैः सञ्चिनुयात् वल्मीकमिव पुत्तिका । परलोकसहायार्थं सर्व्वभूतान्यपीडयन् ||२३८|| 1 नामुत्र हि सहायार्थं पिता माता च तिष्ठति । न पुत्रदारा न ज्ञातिर्धर्मस्तिष्ठति केवलः || २३९ ||
SR No.010187
Book TitleDharm Karm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndian Press Prayag
PublisherIndian Press
Publication Year1929
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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