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________________ धर्म-कर्म-रहस्यः है ? यह बतलाता हूँ, सुनो। अहिंसा, सत्य बोलना, दया, परोपकार, इन्द्रिय-निग्रह, पाप से स्वाभाविक निवृत्ति ये सब तप हैं; शरीर को कष्ट देना तप नहीं है। धर्म वाभाविक है आजकल प्राय: अधिकांश लोग मनु-कथित उपर्युक्त दश धर्मों पर विशेष लक्ष्य नहीं रखते और उनकी प्राप्ति को अपना मुख्य लक्ष्य नहीं बनाते। यही कारण आजकल लोगों में धर्म के हास और अवनति का है। ये १० धर्म ही यथार्थ और मुख्य धर्म हैं जिनकी प्राप्ति से सब प्राप्त हो जाता है और जिनके बिना अन्य सब साधन, अभ्यास और क्रिया-कलाप आदि व्यर्थ हैं। चूँ कि मनुष्य मात्र के लिये ये स्वयंसिद्ध खाभाविक धर्म हैं, अतएव ये निर्विवाद हैं। किसी धर्म अथवा सम्प्र. दाय को इन धर्मों के आचरण की आवश्यकता में कोई शङ्का नहीं है और न हो सकती है, बल्कि मनुष्यमात्र की साधारण बुद्धि भी स्वतः इनको आवश्यक समझती है। कोई ऐसा । व्यक्ति नहीं है जो सत्य, अस्तेय आदि सद्गुणों को खराब : मानता हो, यद्यपि आचरण में उनके विरुद्ध भी चलता हो । घोर असत्यवादी भी असत्य को खराब समझता है और असत्यवादी कहे जाने पर अप्रसन्न होता है। ये धर्म ऐसे हैं . जो केवल किसी धर्म-ग्रन्थ अथवा व्यक्ति-विशेष के आदेश .
SR No.010187
Book TitleDharm Karm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndian Press Prayag
PublisherIndian Press
Publication Year1929
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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