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धर्म-कर्म - रहस्य
साँचे श्राप न लागई, साँचे काल न खाय । साँचे को साँचा मिले, साँचे माँहि समाय ॥ भगवान् पतञ्जलि मुनि का वाक्य हैसत्यप्रतिष्ठायां क्रियाफलाश्रयत्वम् ।
योगसूत्र
सत्य में ढ़ होने से जो क्रिया करता है वह अवश्य सफल होता है अर्थात् जो कहता वह अवश्य होता है और जो काम प्रारम्भ करता है उसमें इच्छित फल प्राप्त होता है ।
भीष्म की यह प्रतिज्ञा है
परित्यजेय त्रैलेाक्य राज्य देवेषु वा पुनः । यद्वाप्यधिकमेताभ्यां न तु सत्यं कथंचन || महाभारत, वनपर्व ० ७३
युधिष्ठिर का ऐसा वाक्य है
राज्यञ्च पुत्राश्च यशोधनं च सर्व न सत्यस्य कलामुपैति ।
वहो, अ० ३३
और भी -
सत्येन सूर्यस्तपति सत्येनाग्निः प्रदीप्यते । सत्येन मरुतो वान्ति सर्वं सत्ये प्रतिष्ठितम् ॥ सत्येन देवा: प्रीयन्ते पितरो ब्राह्मणास्तथा । सत्यमाहुः परो धर्मस्तस्मात्सत्यं न लङ्घयेत् ॥ वही, अनु० ० ७५