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धर्म-कर्म-रहस्य मनु भगवान् का वचन हैवाच्या नियताः सर्वे वाङ्मूला वाग्विनिःसृताः । तां तु यः स्तेनयेद्वाचं स सर्वस्तेयकन्नरः ॥२५६।।
___ मनुस्मृति, अध्याय ४ सब अर्थ शब्दों ही में वाच्यभाव से नियत हैं और शब्दों का मूल वाणी है, क्योंकि सब बातें शब्दों ही से जानी जाती हैं, इससे वाणी से निकली कही जाती हैं, अतएव जो उस वाणी को चुराता है अर्थात् अन्यथा कहता है वह मनुष्य सब भाँति चोरी करनेवाला होता है अथवा उसे सब वस्तु की चोरी करने का दोष होता है। लिखा है
सत्यमेव व्रतं यस्य दया दीनेषु सर्वथा । कामक्रोधी वशे यस्य तेन लोकत्रयं जितम् ।।
महानिर्वाणतन्त्र जो सत्य के अभ्यास में दृढ़ है, सदा दुखियों पर दया रखता है और काम क्रोध जिसके वश में हैं उसने तीनों लोकों को मानों जीत लिया। औरसमूलो वा एष परिशुष्यति योऽनृतमभिवदति ।
प्रश्नोपनिषद्, छठा प्रश्न जो सत्य भाषण करता है वह समूल और सम्पूर्ण रूप से सूख जाता है अर्थात् नष्ट हो जाता है। और-.