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बालकों का ब्रह्मचर्य १०५ सत्यं ब्रूयात्मिय ब्रूयान्न ब्रूयात्सत्यममियम् । प्रिय च नानृतं ब्रूयादेष धर्मः सनातनः ॥१३८॥
मनु अ०४ प्राणियों का हित करना सत्य है और अयथार्थ न बोलना भो सत्य है। जो वार्ता सत्य हो और प्रिय हो वही वोले । सच हो किन्तु प्रिय न हो अथवा प्रिय हो किन्तु सत्य न हो तो वह न बोले-यह सनातन धर्म है। महाभारत का वचन है
नास्ति सत्यात्परो धर्मो नानृतात्पातक परम् । श्रुतिहि सत्य धर्मस्य तस्मात्सत्यं न लोपयेत् ॥
__ शान्तिपर्व, अध्याय १६२ ब्रह्म सत्य तपः सत्य सत्यश्चैव प्रजापतिः । सत्याद् भूतानि जातानि सत्यं भूतमय जगत् ॥३४॥
अनुगोता अ० ३५
सत्य से बढ़कर कोई धर्म नहीं है, झूठ से बढ़कर कोई पाप नहीं है और धर्म का श्रवण करना भी सत्य ही का रूप है, अतएव सत्य का कदापि त्याग न करे।
ब्रह्म सत्य है, तपस्या सत्य है, प्रजापति सत्य हैं, सत्य से भूतों की उत्पत्ति हुई है (अतएव ) जगत् सत्यमय है।