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________________ बालकों का ब्रह्मचर्य बनता है जो जीवन और वल का परम आधार है। डल्लनाचार्य की उक्ति है कि "तस्माद्रसादिधातुस्नेहपरम्पराहेतुकः स्नेहः शुक्रः शुक्रस्नेहात्क्षीरस्थवमिवाभिन्न ओजः' अर्थात् जैसे रसादि धातु का सार वीर्य है उसी प्रकार दूध में घी की अभिन्नता की भाँति वीर्य में "ज" अभिन्न रूप से रहता है। इस "ओज" का वर्णन यों है ओजः सर्वशरीरस्थं स्निग्धं शीतं स्थिरं सितम् । सामात्मकं शरीरस्य वलपुष्टिकरं मतम् ।। योगचिन्तामणि रसादीनां शुक्रान्तानां धातूनां यत्परं तेजस्ततखल्वोजस्तदेव बलमित्युच्यते स्वशाखसिद्धान्तात् । तत्र बलेन स्थिरोपचितमांसता सर्वचेष्टास्वप्रतिघातः स्वरवर्णप्रसादो बायानाचान्तराणां च करणानामात्मकार्यप्रतिपत्तिर्भवति। ओजः सोमात्मकं स्निग्धं शुक्ल शीतं स्थिर रसम्। विविक्तं मृदुमृत्नञ्च प्रणायः नमुत्तमम् । देहस्थावयवास्तेन व्याप्ता भवति देहिनाम् । तदभावाय शीर्यन्ते शरीराणि शरीरिणाम्। ___ यह ओज शरीर में व्याप्त रहकर चिकना, शीतल, स्थिर, उज्जवल और वीर्यरूप है और यह शरीर को बल और पुष्टि देता है। रस से लेकर वीर्य तक जो सात धातु हैं उन सबका परम तेज वह "ओज" है। बल भी वही है और उससे मांस की स्थिरता और पुष्टि, समस्त क्रियाओं द्वारा क्षति की पूर्ति, स्वर और वर्ण की उत्तमता, और बाहर और अन्तर की
SR No.010187
Book TitleDharm Karm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndian Press Prayag
PublisherIndian Press
Publication Year1929
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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