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धर्म-कर्म - रहस्य
एवं मासेन रसः शुक्रो भवति पुंसां स्त्रीणाञ्चार्तवमिति
- सुश्रुत
शुक्र सौम्य सितं स्निग्धं वलपुष्टिकरं स्मृतम् । गर्भवीजं वपुःसारो जीवस्याश्रयमुत्तमम् ॥
वैद्यक
इस
भी उत्पत्ति होती है भोजन के पचने से
मेद, मेद से अस्थि,
रस से
मनुष्य के भोजन का सबसे उत्तम सार वीर्य है । कारण यत्न से उसकी रक्षा करना चाहिए। क्योंकि वीर्य के नाश होने से अनेक प्रकार की व्याधि की और उसका अन्तिम परिणाम मरण है। रस, रस से रक्त, रक्त से मांस, मांस से अस्थि से मज्जा और मज्जा से वीर्य उत्पन्न होता है । मज्जा तक प्रत्येक धातु पाँच रात दिन और अपनी अवस्था में रहती हैं, उसके बाद वीर्य की उत्पत्ति होती है ( इस प्रकार ३० दिन रात और नौ घड़ी में रस से वीर्य की उत्पत्ति होती है)। इस प्रकार एक महीने में पुरुष का रस वीर्य और स्त्री का रज बनता है । वीर्य जीवनी-शक्ति का बढ़ानेवाला, श्वेत, चिकना, बल और पुष्टि का करनेवाला है । यह . गर्भ का बीज, शरीर का सार रूप और जीव का प्रधान आश्रय है ।
डेढ़
घड़ी तक
ऊपर के वाक्यों से यह सिद्ध है कि शरीर में भोजन पान के पचे भाग से ३० दिन के बाद उसका अन्तिम सार वीर्य
,