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वालकों का ब्रह्मचर्य इन्द्र इसी ब्रह्मचर्य के प्रभाव से देवगणों के अधिपति हुए । तप यथार्थ तप नहीं है किन्तु ब्रह्मचर्य ही उत्तम तपस्या है। जो अमोघ ब्रह्मचारी हैं वे मनुष्य नहीं किन्तु देवता हैं। एक
और चारों वेदों का ज्ञान और दूसरी ओर केवल ब्रह्मचर्य-दोनों समान हैं। हे राजा ! जो आजीवन ब्रह्मचारी रहता है उसको कुछ भी दुर्लभ नहीं है। मैं धन्वन्तरि तुम शिष्यों से सत्य सत्य कहता हूँ कि मरण, रोग और वृद्धपना का नाश करनेवाला, अमृत रूप और बहुत विशेष उपचार, मेरे विचार से, ब्रह्मचर्य है। जो शान्ति, सुन्दरता, स्मृति, ज्ञान, स्वास्थ्य और उत्तम सन्तति चाहता है, वह इस संसार में सर्वोत्तम धर्म ब्रह्मचर्य का पालन करे। वीर्य के विषय में उक्ति है
आहारस्य परं धाम शुक्र तद्रक्ष्यमात्मनः । क्षये यस्य वहुन् रोगान्मरणं वा नियच्छति ॥
चरक रसाद्रक्तं ततो मांसं मांसान्मेदः प्रजायते । मेदस्यास्थिस्ततो मज्जा मज्जातः शुक्रसम्भवः ॥
सुश्रुत धाता रसादा मज्जान्ते प्रत्येकं क्रमतो रसः। अहोरात्रात्स्वयं पञ्च सार्धदण्डश्च तिष्ठति ॥
भोज