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________________ धर्म-कर्म-रहस्य ब्रह्मचरण तपसा, देवा मृत्युमुपानत । इन्द्रोह ब्रह्मचर्येण, देवेभ्यः स्वराभरत् ॥ . अधर्ववेद न तपस्तप इत्याहुब्रह्मचर्य तपत्तिमम् । ऊर्ध्वरेता भवेद्यस्तु स देवो न तु मानुपः ।। शिवोक्ति एकतश्चतुरो वेदा ब्रह्मचर्य तथैकतः छान्दोग्योपनिषत् आजन्ममरणावस्तु ब्रह्मचारी भवेदिह । न तस्य किञ्चिदमायामिति विद्धि नगाधिप ! ॥ महाभारत ३६ अनुशा० अ० ७२ भीष्मोक्ति मृत्युव्याधिजरानाशी पीयूपं परौपधम् । ब्रह्मचर्य महत्तं सत्यमेव वदाम्यहम् ।। शान्ति कान्ति स्मृति ज्ञानमारोग्यञ्चापि सन्ततिम् । य इच्छनि महद्धर्म ब्रह्मचर्य चरेदिह ॥ धन्वन्तरि-उक्ति बलेन वै पृथिवी तिष्ठति बलेनान्तरिक्षम् । वीर्यमेव बलम् बलमेव वीर्यम् । उपनिषत् वोर्य ही ब्रह्म, जीवन और सृष्टि-कर्ता है। देवता लोगों ने ब्रह्मचर्य रूपी तपस्या से मृत्यु का पराभव किया और
SR No.010187
Book TitleDharm Karm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndian Press Prayag
PublisherIndian Press
Publication Year1929
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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