________________
निश्चित रूप से स्पष्ट होता है कि आत्मा का शरीरधारी होना ही बन्धन है तथा इस बन्धन का विनाश ही मोक्ष है।
भारतीय दर्शन की एक विशेषता यह है कि यह व्यक्ति को नहीं वरन समाज को सुखी बनाना चाहता है। यहां एक तरह से समाजवादी दृष्टिकोण की झलक परिलक्षित होती है। भारतीय दार्शनिक कभी अपने आपको ही सुखी बनाने की शिक्षा नहीं देते है। वरन् सम्पूर्ण समाज को सुखी जीवन व्यतीत करने की शिक्षा देते हैं। वेद में कहा गया
"सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ।।" अर्थात सभी लोग सुखी हों, सभी रोग रहित हों, सभी प्रिय का दर्शन करे, और कोई दुःख दैन्य को न प्राप्त हो। वेद के समान ही बौद्ध के सारनाथ धर्मचक मे "बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय" का उपदेश दिया गया है।
भारतीय दार्शनिक विचारधाराओं की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख करते हुये "कर्म एवं पुनर्जन्म के सिद्धान्त" का वर्णन करना भी आवश्यक है। चार्वाक को छोड़कर सभी भारतीय दर्शन को मान्यता प्रदान करते है। इस प्रकार कर्म सिद्धान्त को छ: आस्तिक दर्शनों में एवं दो नास्तिक दर्शनों में भी स्वीकार किया है। कुछ लोग यह मानते है कि कर्म सिद्धान्त मे विश्वास करना भारतीय विचारधारा मे अध्यात्मवाद का प्रमाण है।
कर्मवाद के सिद्धान्त की मूल पृष्टभूमि में भारतीय दर्शन की यह मान्यता निहित है कि विश्व में एक शाश्वत नैतिक व्यवस्था है। इस व्यवस्था में किसी भी प्रकार का व्यवधान नहीं है। कर्मो द्वारा ही जीवन का संचालन होता है तथा कर्मबन्धन से जन्म-पुनर्जन्म का चक्र चलता रहता है। कर्मों के कारण ही आत्मा को बारम्बार शरीर धारण करना पड़ता है। इससे अलग कर्म बन्धन से मुक्त होना ही मोक्ष की स्थिति है।
32