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डा० राधाकृष्णन ने लिखा है कि "भारतीय दार्शनिक वहाँ तक निराशावादी है। जहां तक इन विषयों से छुटकारा पाने का सम्बन्ध है। वे आशावादी' है। इस प्रकार निराशावाद भारत दर्शन का आधार वाक्य है किन्तु निष्कर्ष नही है।
भारतीय दार्शनिक सम्प्रदायों की एक सामान्य विशेषता मोक्ष की धारणा को विशेष महत्व प्रदान करना भी है। चार्वाक को छोड़कर सभी दर्शनों में मोक्ष को जीवन का चरम लक्ष्य माना गया है। मोक्ष से तात्पर्य है कि सांसारिक दुःखों से छुटकारा तथा जन्म-पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त होना है। इस प्रकार सांसारिक आवगमन से मुक्त आध्यात्मिक अवस्था ही मोक्ष की अवस्था है।
मैक्समूलर में कहा है कि भारत में दर्शन ज्ञान के लिये नहीं वरन् उस सर्वोच्च लक्ष्य के लिये था जिसके लिये मनुष्य इस जीवन मे चेष्टा कर सकता है।
मोक्ष को ही मुक्ति, निर्वाण, कैवल्य आदि शब्दों से भी अभिहित किया गया है। मोक्ष बन्धन का पूर्ण विनाश है और यह सभी दुःखो के विनाश की स्थिति है तथा आत्मा के परमानन्द की अवस्था है अतः मोक्ष को अभावात्मक-आत्यन्तिक दुःख-विनाश और भावात्मक-आनन्द की प्राप्ति भी है कहा गया है। आत्मा का शरीरधारी होना ही बन्धन है इस बन्धन का विनाश ही मोक्ष है है तथा मोक्ष के लिए आत्मज्ञान की आवश्यकता होती है। इसी दृष्टि से कठोपनिषद् में नचिकेता नामक बालक ब्रह्मज्ञानी यमराज के पास जाकर आत्मविद्या या वेदान्त विद्या के लिये प्रार्थना करता है। सभी दर्शन (भारतीय) यह मानते है कि मोक्ष शोकातीत अवस्था से निवृत्ति है किन्तु सभी दर्शनों में इसकी प्राप्ति के मार्ग भिन्न-भिन्न बताये गये हैं परन्तु सबका उद्देश्य एक ही है। इस प्रकार मार्गों की अनेकता में भी लक्ष्य की एकता का प्रतिपादन, भारतीय दर्शन की विशेषता है। इस प्रकार भारतीय दर्शन का अध्ययन करने से इतना तो
' Ind. Phil,Vol, I (page 50)