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प्रयोग किया जाता है इसका विपरीत भारतीय दर्शन का उद्देश्य केवल तात्विक ज्ञान की प्राप्ति न होकर नानाविधि कष्टों दुःखों एवं बुराइयों से मुक्ति दिलाना है। इस प्रकार स्पष्ट होता है कि भारतीय-दर्शन का दृष्टिकोण व्यापक रूप में व्यावहारिक है सैद्धान्तिक कम है, और पश्चिमी दर्शन सैद्धान्तिक ज्यादा है व्यावहारिक अपेक्षाकृत कम
पश्चिमी दर्शन का आरम्भ उत्सुकता एवं आश्चर्य से हुआ है जबकि भारतीय दर्शन का आरम्भ आध्यात्मिक असंतोष से हुआ है। भारत के दार्शनिकों ने विभिन्न प्रकार के दुःखों को पाकर उन दुःखों के समूल नाश के लिए दर्शन की शरण ली। इसलिए प्रो० मैक्समूलर ने कहा- भारत में दर्शन का अध्ययन मात्र ज्ञान प्राप्त करने के लिए नहीं, वरन जीवन के चरम उद्देश्य की प्राप्ति के लिए किया जाता था।
पाश्चात्य दर्शन में अनुभव को खण्डित रूप से लिया गया है जबकि भारतीय दर्शन में अखण्ड रूप में। पाश्चात्य दर्शन को देखने से स्पष्ट होता है कि यहाँ प्रत्यक्षवाद, अनुमानवाद या युक्तिवाद और प्रतिभावाद या रहस्यवाद की तीन धाराएं पृथक चली। यहॉ प्रत्येक दर्शन में प्रत्यक्ष युक्ति और प्रतिभाज्ञान का प्रयोग होता रहा। जिसके परिणामस्वरूप इस त्रिवेणी संगम से विशुद्ध प्रत्यक्षवाद, युक्तिवाद या प्रातिभज्ञान का विकास न हुआ। मध्ययुग में हिन्दी, मराठी, तेलगु, कन्नड़ आदि प्रान्तीय भाषाओं में रहस्यवाद का विकास अवश्य हुआ किन्तु संस्कृत भाषा में ऐसा नही हुआ और शुद्ध प्रत्यक्षवाद तथा युक्तिवाद का विकास तो किसी भी भाषा के द्वारा यहाँ नहीं हुआ। इसका कारण यह है कि यहाँ अनुभव की सर्वांगीणता का उपयोग होता रहा है और किसी खण्डित अनुभव को लेकर दार्शनिक सम्प्रदाय की स्थापना को आवश्यक और समीचीन नहीं समझा गया।
___ पश्चिमी दर्शन में प्रातिभवाद और रहस्यवाद को महत्वपूर्ण स्थान नहीं मिला बल्कि उसको धर्मों के अन्तर्गत ही रखा गया है पाश्चात्य दर्शन की एक विशेषता यह
1 six systems of Indian Philosophy (page 370)
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