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________________ प्रतिपादन अवच्छेदवाद के आधार पर किया है तथा प्रतिबिम्बवाद का प्रतिपादन पद्मपाद ने किया। संक्षिप्त रूप में यह है कि-एक सूर्य या चन्द्र का जलाशयों में या विविध जल पात्रों में पड़ने वाला प्रतिबिम्ब प्रतिबिम्बवाद का उदाहरण है। महाकाश और घटाकाश का उदाहरण अवच्छेदवाद का है जल और तरंगे तथा रज्जुसर्प, शुक्तिरजतादि आभासवाद के उदाहरण है। ब्रह्म का माया में प्रतिबिम्ब ही ईश्वर कहा जाता है और अविद्या का अन्तःकरण में प्रतिबिम्ब जीव है। मायावच्छिन्न ब्रह्म ईश्वर है और अविद्या या अन्तःकरणवच्छिन्न ब्रह्म जीव है। जीव और ईश्वर के सम्बन्ध में शङ्कराचार्य का कोई एक निश्चत मत नहीं है उनके मत से दोनों अविद्योपाधिक और काल्पनिक है। उनके मत में प्रतिबिम्बवाद अवच्छेदवाद और आभासवाद के बीज है जिनका विकास परवर्ती अनुवायियों ने किया। इन तीनों वादों के मूल ब्रह्मसूत्र- अतएव चोपमा सूर्यादिवत् (ब्र० सू० ३/२/१८) अम्बुग्रहणात्तु न तथात्वम् (वही ३/२/१६) बृद्धिहासभाक्त्वमन्तर्भावादुभयसामञ्जस्यदेवम् (वही ३/२/२०) में तथा उनके शाङ्कर भाष्य में प्राप्त होते है। प्रकाशादिवन्नैवं परः (वही २/३/४६) तथा आभास एव च (वही २/३/५०) इन दोनों सूत्रों में और इनके शाङ्कर भाष्य में स्पष्ट रूप से उक्त तीनों वादों का निर्देश है। इन तीनों सूत्रों के शाङ्कर भाष्य में कहा गया है कि सौर या चन्द्र का प्रकाश जैसे आकाश में फैलकर विद्यमान है, फिर भी अंगुलि आदि का उपाधि के सम्बन्ध में उस प्रकाश को सीधा तथा टेढ़ा देखा जाता है, अथवा जैसे पानी के पात्र में प्रतिबिम्बित सूर्य कंपते हुये जल के सम्पर्क से कंपता हुआ दिखाई पड़ता है पर वस्तुतः सूर्य कांपता नहीं है अथवा जैसे जल में सूर्य का आभास लक्षित होता है, उसी प्रकार जीव के दुःखी होने पर भी ईश्वर में दुःख का सम्बन्ध नहीं होता। इन तीनों उदाहरणों में पहले में अवच्छेदवाद का संकेत दिया गया है। इन्हीं के आधार पर श्री 351
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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