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२. बौद्ध दर्शन ३. जैन दर्शन ४. रामानुज दर्शन ५. पूर्ण प्रज्ञ दर्शन ६. नकुलीश - पाशुपतदर्शन ७. शैवदर्शन ८ प्रत्याभिज्ञादर्शन ६. रसेश्वरदर्शन, १० वैशेषिक दर्शन ११. न्याय दर्शन १२. जैमिनि दर्शन १३. पाणिनि दर्शन १४. सांख्य दर्शन १५. योगदर्शन और १६. शाङ्कर दर्शन के विवेचन है । बहुत विद्वान मानते है कि 'सर्वदर्शन संग्रह में दर्शन निम्नोच्चता के आधार पर है अतः शाङ्कर वेदान्त सर्वश्रेष्ठ दर्शन है । स्थिति चाल
स्वामी विद्यारण्य क समय १३५० ई० के आस-पास है । वे वेदान्तदेशिक के समकालीन थे। शङ्कराचार्य के बाद विद्यारण्य ने जितना प्रचार-प्रसार अद्वैतवेदान्त का किया उतना किसी ने नहीं किया । दक्षिण पूर्व एशिया में उनके शिष्यों ने अद्वैत वेदान्त का प्रचार किया इसलिये कभी - कभी उन्हें द्वितीय शङ्कराचार्य कहा जाता है।
शङ्कराचार्य के नाम से लिखे गये बहुत से ग्रन्थ वस्तुतः जगद्गुरु शङ्कराचार्य विद्यारण्य स्वामी द्वारा ही लिखे गये थे । यथा- देव्यपराधक्षमापनस्तोत्र स्वामी विद्यारण्य द्वारा रचित है क्योकि इसमें कहा गया है—
परित्यक्ता देवा विविधविधसेवाकुलतया ।
भया पञ्चाशीतेशधिक मपनीते तु वयसि । ।
अर्थात् 'मैं पचासी वर्ष से अधिक हो गया हूँ और हे देवि! अब मैं विधिवत पूजा नहीं कर सकता हूँ । अतः क्षमा करो।'
रचनाएँ
स्वामी विद्यारण्य द्वारा रचित १६ ग्रन्थ है जिनमें पञ्चदशी सर्वाधिक प्रख्यात है ।
इसके लेखक स्वामी विद्यास्थ्य तथा उनके गुरु भारती तीर्थ है।
पञ्चदशी में पन्द्रह प्रकरण है। प्रथम पांच प्रकरण विवेकान्त है, मध्य के पांच प्रकरण दीपान्त है तथा अन्त के पांच प्रकरण आनन्दान्त है । अव्यय दीक्षित ने 'सिद्धान्त
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