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________________ अपवाद के निरास के लिये मूलप्रमाण की शुद्धि की अपेक्षा की गई है।' इसलिये अमलानन्द परिसंख्यान जन्य ब्रह्म साक्षात्कार को प्रभा रूप स्वीकार करते थे । शंकराचार्य एवं वाचस्पति मिश्र जीव की ईश्वर भावापत्ति को मानते है। वहीं अमलानन्द माया प्रतिबिम्बित ईश्वर की मुक्तों द्वारा प्राप्यता नहीं स्वीकार करते।' इस प्रकार अमलानन्द अद्वैतवेदान्त सूक्ष्म पर्यवेक्षी दार्शनिक है। विद्यारण्य (१३५० ई०) विद्यारण्य विवरण प्रस्थान के मुख्य अद्वैतवादी दार्शनिकों में एक है विद्यारण्य का पूर्वाश्रम अथवा गृहस्थाश्रम का नाम माधवार्च था। इनके नाम को लेकर विद्वानों में मतैक्य नहीं है क्योंकि कुछ विद्वान इनका दूसरा नाम भारती तीर्थ भी मानते है । डा० वीरमणि प्रसाद उपाध्याय ने भारतीतीर्थ को पंचदशी का लेखक कहा है। डा० टी० एम० पी० महादेवन मानते है । कि स्वामी विद्यारण्य और भारती तीर्थ दो व्यक्ति नहीं, किन्तु एक ही व्यक्ति है । किन्तु उल्लेखनीय है कि माधवाचार्य ने अपने ग्रन्थ 'जैमिनीय न्यायमाला' की टीका में अपने गुरु का नाम भारती तीर्थ उद्धत किया है अतः पृथक मानना समुचित होगा। रामकृष्ण, जिन्होंने पंचदशी पर व्याख्या लिखी है, वे विद्यारण्य के शिष्य थे। स्वामी विद्यारण्य शृंगेरीमठ के शङ्कराचार्य थे ये वेदभाष्य प्रणेता सायण के बड़े भाई थे । माधव के नाम से उन्होंने 'सर्वदर्शन संग्रह लिखा है जिसमें क्रमशः १. चार्वाक दर्शन २ वेदान्तवाक्य जज्ञानभावनाजा परोक्षधीः । मूलप्रमाण दादर्येन नभ्रमत्व प्रपद्यते ।। न च प्रामाण्य परतेस्त्वापात्तिरस्तु प्ररुच्यते । अपवाद निरासाय मूल शुद्धलनुरोधनाद् ।। सि० लेश संग्रह पृ० ४७० से उद्धत कल्पतरु ब्र०सू० शां० भा० एवं भामती ४/४/३. ४/४/६, ४/४/७ तथा देखिये सि० ले० सग्रह पृ० ५५३ सिद्धान्तलेश संग्रह पृ० ५५३ कल्याण - वेदान्तांक, पृ० ६५२ Lights of Vedanta P-111, 116 कल्याण - वेदान्ताक, पृ० ६५२ 308
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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