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________________ अमलानन्द (१३वीं शताब्दी) अमलानन्द भामती प्रस्थान के मुख्य दार्शनिक है। आचार्य अमलानन्द अद्वैतवेदान्त के पूर्ण समर्थक तथा सूक्ष्मपर्यपेक्षी है। इनके गुरु का नाम अनुभवानन्द था। इनके तीन ग्रन्थ प्राप्त होते है- वेदान्तकल्पतरु, शास्त्रदर्पण, पञ्चपादिका दर्पण जिसने अद्वैत वेदान्त के विकास में अतिमहत्वपूर्ण योगदान दिया है। ___ भामती पर अमलानन्द या व्यासाश्रम (१२५० ई०) ने 'कल्पतरु नाम की टीका लिखी। इस टीका पर अप्पयदीक्षित (१५२०–१५६३) ने 'कल्पतरुपरिमल' तथा वैद्यनाथ ने 'कल्पतरुमञ्जरी' की रचना की। अमलानन्द दृष्टिसृष्टिवाद सिद्धान्त के पोषक थे। इस सिद्धान्त के अनुसार समस्त प्रपञ्च शून्य ब्रह्म की अवगति के उपाय के रूप में ही श्रुतियों में सृष्टि और प्रलय का विवेचन स्वीकार किया गया है। यद्यपि श्रुतियों में सृष्टि की परमार्थिकता स्वीकृत नहीं है। यदि आरोप न्याय से प्रतिपादन हुआ है तो अपवाद न्याय से खण्डन भी हुआ है। अमलानन्द के मत में सृष्टि प्रतिपादक श्रुतियों का तात्पर्य वस्तुतः ब्रह्मात्मैक्य में होने से सृष्टि के प्रतिपादन में उसका अभिप्राय कदापि नहीं है।' दृष्टिसृष्टिवादी के मत में सृष्टि तात्विक न होकर दृष्टिकालिक ही है- 'दृष्टि सम-समया विश्वसृष्टिरिति दृष्टिसृष्टिवादः। ब्रह्मदत्त एवं मण्डन मिश्र प्रभृति प्रसंख्यान को ब्रह्मसाक्षात्कार का कारण मानते है। अमलानन्द मानते है कि वेदान्त वाक्यों से जन्य ज्ञान तथा इसके अभ्यास से होने वाली अपरोक्ष बुद्धि तथा उससे होने वाली प्रभा की दृढ़ता से (अविप्रतिपन्न प्रामाण्य होने के कारण) भ्रम नहीं होता है। इसलिये परतः प्रामाण्य भी प्रसक्त नहीं होता है। क्योंकि । श्रुतीनां सृष्टि तात्पर्य स्वीकृत्ये दमिहेरितम्। ब्रह्मात्मैक्यपरत्वात्तु तासां तन्नैव विद्यते।। (शास्त्रदर्पण- १/४/४) पृ० ८७ (वाणी विलासं प्रेस श्रीरंगम् १६१३) 307
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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