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लेश संग्रह' में माना है कि 'ध्यानदीप' प्रकरण भारतीतीर्थ कृत है। किन्तु निश्चलदास ने वृत्तिप्रभाकर में कहा है कि विद्यारण्य प्रारम्भ के दश प्रकरणों के लेखक है। और अन्तिम पाँच प्रकरणों के लेखक भारतीतीर्थ है। सम्प्रति साधारण जनों द्वारा सम्पूर्ण पञ्चदशी के लेखक स्वामी विद्यारण्य ही माने जाते है परन्तु यह मत भ्रामक है। सिद्धान्त ईश्वर-जीव सम्बन्ध- अद्वैत वेदान्त के अन्तर्गत ईश्वर और जीव के सम्बन्ध में सुरेश्वराचार्य का आभासवाद, पद्मपादाचार्य एवं प्रकाशात्मा का प्रतिबिम्बवाद एवं वाचस्पति मिश्र का अवच्छेदवाद मुख्य सिद्धान्त है। विद्यारण्य उक्त सिद्धान्तों में से प्रतिबिम्बवाद के अनुयायी प्रतीत होते है।'
विद्यारण्य मानते है कि माया में प्रतिबिम्बित चेतन को ईश्वर एवं अविद्या में प्रतिबिम्बित चेतन को जीव कहते है। माया शुद्ध सत्वमयी है अविद्या मालिन सत्वमयी तृप्तिदीप में कहा गया है कि जीवत्व की उपाधि अन्तःकरण है। साहित्य है और ब्रह्म की उपाधि अन्तःकरण साहित्य है।
माया
माया का त्रिविध वर्णन पञ्चदशी में बड़े सुन्दर ढंग से किया गया है। प्रत्यक्षतः वह वास्तवी है। अर्थात् वह अनिर्वचनीय है और श्रौतबोध से तुच्छ या अलीक है।
तुच्छानिर्वचनीय च वास्तवी चेत्यसौ त्रिधा। ज्ञेया माया त्रिभिर्वोधेः श्रौतयौक्तिकलौकिकैः ।। चित्रदीप १३०।।
आत्मा
पञ्चदशी में भी वेदान्त के समान अध्यारोप और अपवाद का प्रयोग किया गया है। और इसके पूरक के रुप में अन्वय-व्यतिरेक प्रणाली को भी प्रयुक्त किया गया है।
T.M.P. Mahadevan- The Philosophy of Advaita, P-219 (Ganesh & Co. Madras, 1957)
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