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समय- श्री हर्ष के विषय में जानकारी हमें इनके ग्रन्थों से मिलती है। दार्शनिक शिरोमणि महाकवि श्री हर्ष की माता का नाम मामल्ल देवी तथा पिता का नाम महाकवि हीर था। इनकों कुछ विद्वानों ने बंगाल का, कुछ ने मिथिला का, तथा कुछ ने यू० पी० का बतलाया है परन्तु इनकी अपनी उक्ति से मालूम पड़ता है कि ये कन्नौज के थे। क्योंकि श्री हर्ष के समय निर्धारण में अन्तः साक्ष्य तथा वाह्य साक्ष्यों से सहायता मिलती है। अन्तः साक्ष्य में श्री हर्ष की दो रचनाएं है- 'खण्डन खण्ड खाद्य और 'नैषध चरितम् ।' जिसमें उन्होंने स्वयं थोड़ा परिचय दिया है। इन्होंने लिखा है कि ये कन्नौज
के राजा जयचन्द्र से विशेष आसन एवं विशेष पानादि प्राप्त कर सम्मान प्राप्त किये थे।
श्री हर्ष के "विजय प्रशस्ति' नामक ग्रन्थ से पता चलता है, जो कन्नौज के महाराज विजयचन्द्र की प्रशंसा में लिखा गया था। अतः श्री हर्ष महाराज विजयचन्द्र के समकालीन थे। महाराज विजयचन्द्र के लड़के का नाम जयचन्द्र था जिनका राज्यकाल ११६६ ई० से ११६३ ई० तक माना गया है। श्री जयचन्द्र का ११८६ ई० का एक दानपत्र भी मिलता है जिससे उनका समय स्पष्ट निर्णीत हो जाता है। अतः श्री हर्ष का समय भी १२वीं शताब्दी रहा होगा।
___ श्री हर्ष ने 'खण्डन खण्ड खाध' नामक अपने ग्रन्थ में उदयन की 'लक्षणावली' में दी गयी न्याय दर्शन की परिभाषाओं का खण्डन किया है। लक्षणावली की रचना १०वीं शताब्दी के अन्त में हुयी थी जैसा कि उसकी पुष्पिका से ज्ञात होता है। श्री हर्ष ने लक्षणावली के लक्षणों का खण्डन खण्ड खाद्य' में प्रधान रूप से खण्डन किया है। इसके अनुसार श्री हर्ष उदयनाचार्य के परवर्ती सिद्ध होते है।
'ताम्बूलद्वयमासनं च लभते यः कान्यकुब्जेश्वरात । (खण्डन खण्ड खाद्य पृ० ७५४) 'देखिए-खण्ड पृ०३ अच्युत। 'न्याय वार्तिक ता० के उपर उदयनाचार्य ने 'परिशुद्धि नामक टीका लिखी है इन्होंने अपने लक्षणावली ग्रन्थ का रचनाकाल इस प्रकार बताया है- तर्काम्बराङ्क प्रमितेष्वतीतेषु शकान्ततः । वर्षेषूदयनश्चक्रे सुबोधां लक्षणावलीम् ।।
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