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अन्य दार्शनिक चित्सुख और मधुसूदन सरस्वती है। जिनके ग्रन्थ क्रमशः तत्वप्रदीपिका (चित्सुखी) और अद्वैत सिद्धि है। खण्डनखण्डखाद्य चित्सुखी और अद्वैतसिद्धि बाध प्रस्थान के मूल ग्रन्थ है। इनमें से प्रत्येक के ऊपर टीकाएं लिखी गयी है। इन सभी टीकाकारों को बाध प्रस्थान के अर्न्तगत रखा जाता है। इस प्रकार बाध प्रस्थान के दार्शनिकों की संख्या अधिक है।
बाध प्रस्थान का मुख्य प्रयोजन है तर्कबुद्धि द्वारा अद्वैतवेदान्त की प्रतिरक्षा करना तथा उन सभी आपत्तियों का निराकरण करना जो अद्वैत विरोधी दार्शनिकों ने समय-समय पर अद्वैतवाद पर लगाई थी।
२. श्री हर्ष का उद्देश्य 'खण्डन-खण्ड-खाद्य में वेदान्त के सिद्धान्त का प्रतिपादन करना था। इसके प्रबल प्रतिपक्षी नैय्यायिक ही थे। उदयनाचार्य न्याय के अवतार माने जाते है। अतः श्री हर्ष ने मुख्य रूप से इन्हीं के मत का निराकरण किया
और भारतीय दर्शन में अद्वैत वेदान्त और न्यायदर्शन के बीच संघर्ष का सूत्रपात किया। स्वामी विद्यारण्य ने पञ्चदशों में श्री हर्ष के कृतित्त्व का मूल्यांकन करते हुए लिखा है
निरुक्तावभिमानं ये दधते तार्किकादयः ।
हर्षमिश्रादिभिस्ते तु खण्डनादौ सुशिक्षिता।। अर्थात् जो तार्किक (नैय्यायिक) वैशेषिक और मीमांसक निरुक्त पर अभिमान करते है अथवा जो नैय्यायिकगण पदार्थो के लक्षण और व्याख्यान पर बल देते है, उनको श्री हर्ष इत्यादि दार्शनिकों ने खण्डन खण्ड खाद्य में अच्छी तरह से शिक्षित कर दिया है। अर्थात् उनके गर्व को चूर्ण कर दिया है।
इस प्रकार श्री हर्ष के दार्शनिक महत्व का सहजता से अनुमान लगाया जा सकता है। ऐसे महान दार्शनिक का अवतरण कब, कहां हुआ तथा किन किन ग्रन्थों की रचना की, इसका प्रामाणिक विवेचन अपेक्षित है।
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