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से भी ये जाने जाते थे। इनकी प्रसिद्ध रचनाएं ब्रह्मविद्याभरण, शान्तिविवरण, और गुरुप्रदीप है। आनन्दबोध भट्टारकाचार्य (१२वीं शताब्दी)
अद्वैत वेदान्त के समीक्षक आचार्य आनन्द बोध भट्टारक बारहवीं शती के पूर्वार्द्ध में थे। आनन्दबोध इष्टसिद्धिकार विमुक्तात्मा के शिष्य थे। इनके तीन ग्रन्थ उपलब्ध हैन्याय मकरन्द, प्रमाण माला और न्याय दीपावली। 'न्याय-मकरन्द' संग्रहात्मक ग्रन्थ है, इसमें इन्होंने नैयायिकों का खण्डन किया है। अनुभूतिस्वरूप ने इन तीनों ग्रन्थों पर टीकाएं लिखी है। न्यायमकरन्द तथा प्राणमाला पर चित्सुख की भी टीकाएं प्राप्त होती
न्यायवैशेषिक दर्शन का खण्डन करके अद्वैतवाद की स्थापना करने के कारण आनन्दबोध बाद प्रस्थान के प्रमुख दार्शनिक दार्शनिकों में से है। उन्होंने न्यायमकरन्द में ख्यातिवाद के विभिन्न मतों की अच्छी समालोचना की है और अनिर्वचनीय ख्यातिवाद को प्रतिपादित किये। न्यायमकरन्दकार का मत पद्मपादाचार्य और प्रकाशात्मा के मतों से भिन्न है। मिथ्यात्व एवं अनिर्वाच्यता को स्पष्ट करते हुए आनन्दबोधाचार्य कहते है कि अविद्या के कार्यो एवं परिणामों सहित अविद्या की निवृत्ति को बाध कहते है और बाध का ज्ञान होना ही अनिर्वात्यता है।'
आनन्दबोधाचार्य सद्सद्विलक्षण अविद्या को ही जगत का कारण मानते है। सत् पदार्थ और असत् पदार्थ दोनों ही जगत की उत्पत्ति का कारण नहीं है अतः सत् और असत् से विलक्षण अविद्या ही है। आनन्दबोधाचार्य आत्मा को आनन्दरूप नहीं मानते है अपितु संविद्रूप मानते है। वे अविद्या निवृत्ति को सत्, असत्, सदसत् और अनिर्वचनीय
1 Tripathi Introduction to Anandajrana's Tarkasangraha. 2 'सविलासाविद्यानिवृत्तिरेव बाधस्तदगोचर तैवानिर्वाच्यता। (न्यायमकरन्द, पृ० १२५ चौखम्बा सस्करण, बनारस १६०७) न्यायमकरन्द पृ० १२२, १२३
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