SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 309
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २. नृसिंहाश्रम कृत तत्वबोधिनी ३. रामतीर्थ कृत अन्वयार्थ प्रकाशिका ४. राघवानन्द कृत विद्यामृतवर्षिणी ५. विश्ववेद कृत सिद्धान्तदीप आदि टीकाएं है । शङ्करोत्तर अद्वैतवादियों में जगतकारणता के सम्बन्ध में तीन मत प्रतिबिम्बवाद, आभासवाद, अवच्छेदवाद प्रचलित है । सर्वज्ञात्ममुनि का जगत कारणता सम्बन्धी मत विवरणकार के मत से भिन्न है- विवरणकार का मत है कि शुद्ध चित् तत्व ही ईश्वर और जीव रूप में दिखाई पड़ता है और साक्षी के रूप में कार्य करता है। और वहीं जगत का उपादान कारण है। संक्षेपशारीरक सर्वज्ञात्ममुनि का कथन है कि अविद्या में शुद्ध चित्त का प्रतिबिम्ब ईश्वर है और अन्तःकरण में शुद्ध चित् का प्रतिबिम्ब जीव है । अतः शुद्ध चित् ही जो अविद्यागत प्रतिबिम्ब का मूल है, साक्षी एवं जगत् का उपादान कारण है। किन्तु वाचस्पति मिश्र ने जीव को ही जगत् का उपादानकारण माना है क्योंकि अविद्या के कारण जीव ही ब्रह्म साक्षात्कार न करके प्रपञ्च रूप जगत् की सृष्टि करता है ।' अद्वैतानन्द बोधेन्द्र ( ११४६ ई०) यह अद्वैत वेदान्त के मुख्य दार्शनिक थे इनका (अद्वैतानन्द बोधेन्द्र) का काल बारहवीं शती के पूर्वार्ध का अन्त है। यह कांची के शारदामठ ( कामकोटिपीठ) के पीठाधीश थे और भूमानन्द सरस्वती या चन्द्रशेखरेन्द्र सरस्वती के शिष्य थे रामानन्द सरस्वती से वेदान्त विद्या का गूढ़ अध्ययन किया था । चिद् विलास या आनन्दबोध नाम अद्वैतसिद्धि पर ब्रह्मानन्दी टीका, पृ० - ४८३ (बम्बई प्रकाशन) तथा सिद्धान्त बिन्दु, पृ० २२५-२२७ 294
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy