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वाचस्पति का मत है कि शारीरक भाष्य रूपी गंगा से मिल जाने के कारण उनकी कृति भामती भी पवित्र हो गयी है। भामती ने निःसन्देह शारीरक भाष्य की रक्षा की है। विशेषतया उन दर्शनों से जिसका खण्डन स्वयं शङ्कराचार्य ने तर्कपाद में किया है। वाचस्पति मिश्र के समय में बौद्ध, जैन, सांख्य, वैशेषिक, पाशुपत, पांचरात्र दर्शनों के आचार्यो ने शङ्कर के खण्डनों का प्रतिवाद किया था। वाचस्पति मिश्र ने इस प्रतिवाद का निराकरण किया है। शारीरक भाष्य के तर्कपाद को जितना भामती में प्रामाणिक, तथ्यसंगत और युक्तियुक्त बनाया है उतना किसी अन्य टीका ने नहीं किया।
वाचस्पति मिश्र ने पद्मपाद की पंचपादिका (विवरण प्रस्थान) का कहीं-कहीं खण्डन किया है। अमलानन्द सरस्वती ने इसका और खण्डन किया।
वस्तुतः प्रकाशात्मा ने विवरण में भामती का भी प्रबल खण्डन किया है। सर्वज्ञात्म मुनि- (६०० ई०)
सर्वज्ञात्म मुनि वार्तिक प्रस्थान के दार्शनिक है। इनका समय ६०० ई० माना गया है। सर्वज्ञात्ममुनि का दूसरा नाम नित्यबोधाचार्य था। ये शृंगेरीमत के नवम मठाधीश थे। सर्वज्ञात्ममुनि की प्रख्यात रचना संक्षेप शारीरक' है। सर्वज्ञात्ममुनि ने अपने गुरु का नाम देवेश्वराचार्य लिखा है- 'जयन्तिदेवेश्वरपादरेणवः । (सं० शारी० १/८) रामतीर्थ ने देवेश्वर से सुरेश्वराचार्य का ही अर्थ लगाया है। सर्वज्ञात्मा आचार्य सुरेश्वर के शिष्य थे। संक्षेप शारीरक को शारीरक भाष्य का भी वार्तिक कहा जाता है। यह पद्य में है। सर्वज्ञात्ममुनि के दो और ग्रन्थ है- पंचप्रक्रिया और प्रमाण लक्षण। संक्षेप शारीरक पर अन्य टीकाएं है जो निम्न है
१. मधुसूदनसरस्वती कृत संक्षेप शारीरक संग्रह
1 भामती का मंगलाचरण 2 (१) डा० दास गुप्त- ए हिस्ट्री आफ इण्डियन फिलासफी भाग-२ पृ० ११२ (२) संक्षेपशारीरक १/- पर रामतीर्थ की टीका
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