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________________ कल्पतरुकार का कथन है कि वेदान्त दर्शन जीव एवं ब्रह्म के ऐक्य का बोध कराने में समर्थ है। जीव और अविद्या के बीच श्री मिश्र जी आश्रयाश्रयीभाव मानते है और इसके विपरीत ईश्वर और अविद्या में विषयविषयीभाव को स्वीकार करते है। श्री वाचस्पति मिश्र के अनुसार परमार्थतः ईश्वर भी अतात्विक है किन्तु नाम और रूप की अपेक्षा से सत्य कहा जाता है। ईश्वर और जीव दोनों कार्य-प्रपञ्च के अंगभूत है दोनों में अंशी और अंश का समष्टि और व्यष्टि का सम्बन्ध है। कारणोपाधि ईश्वर और कार्योपाधि जीव है। उनके यह उपाधिभेद ही अवच्छेदक भेद है। इस प्रकार अवच्छेदवाद द्वारा जहां ब्रह्म की निरपेक्षता सिद्ध होती है वहीं जीव का जीवत्व भी आपेक्षिक सत्य माना जाता है। ब्रह्म का जीवभाव काल्पनिक नही अपितु भाविक है।' कर्मसमुच्चित ज्ञान शाङ्कर मत में केवल ज्ञान से ही ब्रह्मसाक्षात्कार माना गया है किन्तु कुछ आचार्यो ने जैसे ब्रह्मदत्त तथा मण्डन मिश्र ने कर्मसमुच्चित ज्ञान को ब्रह्मसाक्षात्कार का कारण माना है इसको ये अभ्यास तथा प्रसंख्यान कहते है। वाचस्पति मिश्र भी उक्त मत का समर्थन करते है। मण्डन मिश्र ने 'ब्रह्मसिद्धि में इसका वर्णन किया है। निदिध्यासन को बारबार आवृत्ति करने की आवश्यकता को 'प्रसंख्यान' शब्द दिया है। अमलानन्द मानते है कि वाचस्पति मिश्र भी मण्डन मिश्र के प्रसंख्यान से ही ब्रह्मसाक्षात्कार को स्वीकार करते है। शङ्कर और वाचस्पति वाचस्पति मिश्र ने शङ्कराचार्य को विशुद्ध विज्ञान तथा करुणाकार कहा है। 1 ब्रह्मात्मैकत्व बोधित्वाद वेदान्तिनाम्- वेदान्तकल्पतरु, पृ० २५ (प्रथम भाग) भामती - वही - पृ० ३७५ ३ वेदान्त कलपतरु, पृ०५६ 292
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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