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१. पञ्चपादिका दर्पण स्वामी अमलानन्द २. पञ्चपादिका टीका आनन्दपूर्ण विद्यासागर ३. वेदान्तरत्नकोष नृसिंहाश्रम ४. प्रबोधपरिशोघनी आत्मस्वरुप ५. तात्पर्य द्योतिनी
विज्ञानात्मा दार्शनिक सिद्धान्त
जहां तक पद्मपादाचार्य के दार्शनिक सिद्धान्त का प्रश्न है अद्वैतवेदान्त के क्षेत्र में उन्होंने एक नई दृष्टि दी थी। पञ्चपादिकाकार पद्मपादाचार्य एवं विवरणकार प्रकाशात्मायति के नाम से जो दार्शनिक विवेचन मिलता है वह विवरण सम्प्रदाय के नाम से मिलता है। पद्मपादाचार्य ब्रह्म एवं अविद्या में आश्रयाश्रयिभाव एवं विषय-विषयि भाव सम्बन्ध स्थापित करते है।'
एन. के. देवराज भारतीय दर्शन में लिखते है कि- “पद्मपाद ने माया या अविद्या को अनिर्वचनीय तथा जड़ात्मक अविद्या शक्ति कहा है। तात्पर्य यह है कि माया या अज्ञान अनादि और भावरूप है, सत् और असत् से विलक्षण है और ज्ञान से विनाश्य है। माया को भावरूप कहने का अर्थ सिर्फ इतना है कि वह अभावरूप नहीं है (अभाव विलक्षणत्व मात्रं विवक्षितम्)
आच्छाद्य विक्षिपति संस्फुरदात्मरूपम् जीवेश्वरत्व जगदाकृतिभिर्मुषैव अज्ञानमावरण विभ्रमशक्ति योगात् आत्मत्त्व मात्र विषयाश्रयता बलेन। - सं० शारीरक, १/२०
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