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किया जाता है ।"" योग वासिष्ठ में ३२ हजार श्लोक हैं जो छः प्रकरणों में बंटा है। ये प्रकरण हैं- १. वैराग्य २. मुमुक्ष व्यवहार ३. उत्पत्ति ४. स्थिति ५. उपशम और ६. निर्वाण
इहवैराग्यमुमुक्षुव्यवहारोत्पत्तिकास्थितयः ।
उपशमनिर्वाणाख्ये वासिष्ठेषट्प्रकरणानि ।।' (लघुयोगवासिष्ठ - ६ । १८ ८४) योगवासिष्ठ की रचना शैली पुराणों की तरह मिलती जुलती है, किन्त पुराणों के पञ्चलक्षण नहीं मिलते हैं। वैसे उसमें ज्ञानमार्ग और समाधि अवस्था के वर्णन आख्यानों द्वारा श्लोकों में किये गये हैं । डा० भीखन लाल आत्रेय ने अपने 'ग्रन्थ फिलासफी आफ योगवाशिष्ठ' से अपने वचनो को उधार लिया है। इस प्रकार सिद्ध होता है कि योगवासिष्ठ एक वेदान्त ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ के कल्पनावाद और अजातिवाद शब्द गौणपाद कारिका से साम्य रखते हैं । किन्तु मुख्य अन्तर है कि यह ग्रन्थ किसी एक सम्प्रदाय विशेष की तरफ संकेत नहीं करता है । इस प्रकार यह ग्रन्थ सातवीं शताब्दी में लिखा गया होगा ऐसा विद्वानों का मत है ।
टीकाएँ- योगवासिष्ठ पर कई टीकाएँ हैं जिनमें निम्नलिखित मुख्य हैं।
१. गंगाधरेन्द्रसरस्वती के शिष्य आनन्दबोधेन्द्र सरस्वतीकृत 'तात्पर्यप्रकाश' (१८५ ई०
में लेखक ने इसे लिखा था )
२. नरहरि के पुत्र अइयारण्यकृत 'वासिष्ठरामायण चन्द्रिका' ।
३. माधव सरस्वती कृत 'पदचन्द्रिका' ।
४. रामदेवकृत 'योगवासिष्ठ व्याख्या' ।
६. ’योगवासिष्ठतात्पर्यसंग्रह' ( अज्ञातकत्तृक)
इसके अतिरिक्त अन्य ग्रन्थ भी प्रसिद्ध है यथा- बृहद्योगवासिष्ठ, लघुज्ञानवासिष्ठ, योगवासिष्ठ, गौड़कृतअभिनन्दकृत लघुयोगवासिष्ठ (६वीं शदी)
योगवासिष्ठ - डा० महाप्रभुलाल गोस्वमी - पृ० ११
2 अभिनन्दगौणकृत लघुयोगवासिष्ठ, प्रेस निर्णयसागर बम्बई १९३७ ।
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