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"एको देवः सर्वभूतेषु गूढ़: सर्वव्यापी सर्वभूतान्तरात्मा ।
---------- साक्षी चेता केवलो निर्गुणश्च ।। श्वेता० ६/११) छान्दोग्य उपनिषद् में ईश्वर के सम्बन्ध में यहां तक कहा गया है कि इस सृष्टि की रचना उस परम तत्व के ईक्षण से ही होती है- 'तदैक्षत बहुस्यां प्रजायेयति तत्तेजोऽसृजत --
__ ब्रह्म सर्वशक्तिमान है, जगत को उत्पन्न करने की शक्ति एकमात्र उस परम सत् ब्रह्म में ही है।
तैत्तिरीय उपनिषद् के अनुसार- 'ब्रह्म ही जगत की उत्पत्ति, स्थिति और लय का उत्तरदायी कारण है।' सर्वशक्तिमान शास्वत ब्रह्म वही है जिससे सभी वस्तुओं की उत्पत्ति सभी की स्थिति और जिसमें सभी वस्तुओं का अन्त होता है- 'यतो वा इमानि भूतानि जायन्ते येन जातानि जीवन्ति तत्प्रयान्ति...तद्ब्रह्मेति।
कठोपनिषद में ब्रह्म को 'प्रकाश पुंज' कहा गया है- सूर्य, चन्द्रमा, तारे, नक्षत्र आदि अपने प्रकाश से प्रकाशित न होकर ब्रह्म की ज्योति से प्रकाशित होते हैं अर्थात् ब्रह्म के प्रकाश से ही सभी प्रकाशमान होते हैं। इस उपनिषद् में भी ब्रह्म को ही एकमात्र सत्य स्वीकार किया गया है और ब्रह्म के अतिरिक्त किसी भी अन्य वस्तु की
सत्ता नहीं है।
ब्रह्म के सम्बन्ध में कहा गया है कि जो सम्पूर्ण सृष्टि में एकमात्र तत्व ब्रह्म को देखता है, वही ज्ञानी है, वही अमरत्व को भी प्राप्त होता है। इसके विपरीत जो देखता है वह बारम्बार मृत्यु को प्राप्त होता है, और आवागमन के चक्र में फंसा रहता है।'
'छान्दोग्य उप० (६-२-२-३)
तैत्तिरीय उप० ३/१ ३ नतस्य सूर्यो भांति न चन्द्रारकं नेमां विद्युतो भाति कुतोऽयमाग्नि। तमेव भान्तमनुभाति सर्व तस्य भाषा सर्वमिद विभाति ।। (क०
उप० ११/५/१५) 4 मनसैवेदमाप्तव्यं नेह नानास्ति किंञ्चन । मृत्यो. स मृत्युं गच्छति य इह नानेव पश्यति ।। (क० ३४/११/४/११)
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