________________
प्रकृति में दोनों का अभाव है। सांख्य दर्शन में प्रकृति को 'माया' कहा गया है- 'मायां तु प्रकृति विहात मायिन तु महेश्वरम्' (श्वे०उप०४/१०)। "गुणानां साम्यावस्था प्रकृतिः” कहा गया है अर्थात् प्रकृति के तीनों गुणों की साम्यावस्था ही प्रकृति है। सांकारिका में प्रकृति की सत्ता सिद्ध करने के लिये निम्न कारिका दी गयी है
भेदानां परिमाणात् समन्वयात् शक्तितः प्रवृत्तेश्च । कारण कार्य-विभागादविभागाद् वैश्वरुप्यस्य ।।
सां०का०
प्रकृति और इसके तीन गुण
प्रकृति तीन गुणों से युक्त है इसलिये इसे 'त्रिगुणी' भी कहा जाता है ये तीनों गुण- सत, रज, तम हैं। ये गुण अति सूक्ष्म और अतीन्द्रिय है। इसलिये गुणों का भी प्रत्यक्ष नहीं होता है केवल इसका अनुमान होता है। सत्वगुण का कार्य सुख है रजोगुण का कार्य दुःख है और तमोगुण का कार्य मोह है। कौमुदीकार श्री मिश्र जी ने त्रिगुणों का जो विवेचन किया है वह इस प्रकार है
"प्रीत्यप्रीतिविषादात्मकाः प्रकाशप्रवृत्ति नियमार्थाः।
अन्योन्याभिभवाश्रयजननमिथुन वृत्तयश्च गुणाः।" इस उपर्युक्त कारिका में त्रिगुणों का सामान्य लक्षण दिया गया है और कहा गया है कि सत्व गुण का स्वरुप प्रीत्यात्मक, रजोगुण का अप्रीत्यात्मक (दुःखात्मक) तथा तमोगुण का स्वरुप विषादात्मक (मोहात्मक) है। इसका विशिष्ट लक्षण भी कौमुदीकार श्री मिश्र ने दिया है
"सत्वं लघु प्रकाशकमिष्टमुपष्ठम्भकं चलं च रजः ।
गुरु वरणकमेव तमः प्रदीपचाच्यार्थतो वृत्तिः" ।। अर्थात् सत्वगुण लाघव एवं प्रकाश से युक्त होता है यही सत्व गुण अग्नि के उर्ध्वजलन एवं तिर्यगगमन में सहायक होता है। रजोगुण को अप्रवृत्तिशील सत्वतमादि