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________________ मुख्य रुप से हीनयानी बौद्ध, वैशेषिक, नैयायिक, तथा कुछ मीमांसक असत्कायर्क्सवाद को मानते हैं। सत्कार्यवाद के दो रुप हैं- १. परिणामवाद २. विवर्तवाद ___ सांख्य योग और रामानुज वेदान्त परिणामवाद को मानते हैं क्यों कि ये कारण का कार्य में परिवर्तन वास्तविक मानते हैं और जो लोग कारण का कार्य में परिवर्तन वास्तविक न मानकर प्रातीतिक मानते हैं उन्हे विवर्तवादी कहा जाता है। शून्यवाद, मूलविज्ञानवाद,शांकर वेदान्त ब्रहम विवर्तवाद को मानता है। सांख्य प्रकृति परिणामवाद को मानता है सांख्य ने सत्कार्यवाद की सिद्धि के लिये जो युक्तियां दी गयी हैं वह निम्न कारिका से स्पष्ट हैं 'असद कारणादुपादानंग्रहणात् सर्वसंभवाभावात । शक्तस्य शक्य करणात् कारणभावाच्च सतकार्यम् सा०का०६ प्रकृति स्मस्त जड़ जगत की जननी है किन्तु स्वयं अजन्मा है। सृष्टि का आदि कारण होने से इसे 'मूलप्रकृति' भी कहा जाता है। विश्व का प्रथम मौलिक तत्व होने के नाते इसे 'प्रधान' भी कहा जाता है। यह दिखायी नहीं देती है इसलिये 'अव्यक्त' कहलाती है और इसका केवल अनुमान ही किया जाता है इसलिये 'अनुमान' संज्ञा से भी व्यक्त किया जाता है। यह जड़ और अचेतन है विवेकशून्य है स्वतंत्र है, एक है, किन्तु अनेक पुरुषभोग्य है। प्रकृति त्रिगुणात्मिका है अर्थात् सत, रज, तम तीन गुणों से युक्त है इसलिये यह ‘सुःख दुःख मोहात्मक है। प्रकृति प्रसवधर्मिणी है क्यों कि सम्पूर्ण जगत उसी से प्रसूत है।"त्रिगुणमविवेकि विषयः सामान्यमचेतनं प्रसवधर्मि' । (सांख्य कारिका ११) सांख्य पकृति को ही जगत् का एकमात्र कारण स्वीकार करता है क्यों कि यदि चेतन ब्रहम, आत्मा यापुरुष को जड़ जगत का कारण मानने पर जगत जड़ न होकर चेतन हो जायेगा। प्रकृति अचेतन होते हुये भी निरंतर सक्रिय है। प्रकृति व्यक्तित्व रहित है क्यों कि व्यक्तित्व उसी का होता है जिसमें बुद्धि होती है और संकल्प किन्तु
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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