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__ था, निममें २५ तीर्थकर और अवशेष शलाका पुरुषोंके चरित्र वर्णित थे। श्री निनसेनाचार्य इस बानको स्पष्ट प्रकट करते हैं:
'कविपरमेश्वरनिगदितगद्यकथामातृकं पुरोश्चरितम । ।
सकलछन्दोलकतिलक्ष्यं मूक्ष्मार्थगृढपदरचनम् ॥' ___ अतएव इन उच्छेखोसे यह स्पष्ट है कि जैनाचार्य प्रणीत उपरोक्त चरित्र ग्रन्योके अतिरिक्त प्राचीनकालमें और भी ऐसे पुराण ग्रंथ मौजूद थे जिनमें श्री पार्श्वनाथजीका चरित्र वर्णित था। फितु साम्प्रदायिक विद्वेष और कालमहाराजकी कृपासे वह आज उलञ्च नहीं है। साथ ही यहापर हम यह भी स्पष्ट कर देना आवश्यक सम
झते हैं कि पार्श्वचरित्र में जो कमठ जीवके कमठ जीवका वैर यथार्थ वैरभावका वर्णन है, वह यथार्थ है । है-रहस्यपूर्ण अलंकार केवल कवियोने अपने काव्यग्रन्थोंको . नहीं है। सुललित बनानेके लिये इसका अविष्कार
नही किया था । दिगम्बर जैन संप्रदायके प्राचीनसे प्राचीन ग्रन्थमें इस विषयका उल्लेख मौजूद है। कमठके जीव आरने भगवान पर उपप्तर्ग किया था और उसके अंतमें भगवानको केवलज्ञानकी प्राप्ति हुई थी। यह बात जैनसंप्रदायमें एक स्पष्ट घटनाके तौरपर प्रख्यात है। इतना ही क्यों? प्रत्युत भगवान पार्श्वनाथनीकी जितनी भी प्रतिमायें मिलती हैं; वह सर्पफणयुक्त मिलती हैं। और वे इस घटनाकी प्रगट साक्षी हैं। वह फणमण्डल बहुधा सात अथवा नौ फणोंका होता है, परन्तु सौ फणावाली प्रतिमायें भी मिली हैं। उडीसा और मथुराकी