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________________ _ [७६] . किन्तु उपरोल्लिखित विवरणसे पाठक यह न समझ लें, कि ईसाकी ५वीं या ६ठी शताब्दिके पहले जैन पुराण थ प्राचीन- कोई जैनग्रन्थ भगवान पार्श्वनाथनीके कालसे उपलब्ध है। दिव्य चरित्रको प्रकाशमे लानेके लिए रचा ही न गया था। यह बात नहीं है, क्योंकि भगवान महावीरस्वामीकी दिव्यध्वनिसे प्रगट हुए और श्री इन्द्रभू त गौतमगणधर द्वारा ग्रथित प्रथमानुयोगका अस्तित्व ईसासे पूर्वका प्रथम शताव्दि तक रहा था, और उसको लुप्त होता हुआ देखकर ही पूर्वाचार्योने उस समयके उपलब्ध अंशसे ग्रन्थोंको रचकर उन्हें लिपिबद्ध करना प्रारभ कर दिया था। उसके पहले आगम ग्रथ ऋषियोंकी स्मृति में सुरक्षित रहते थे, यह हम पहले बलला चुके हैं । अतएव इस आधारसे बने हुये प्राचीन -पुराण ग्रथोके अस्तित्वका पता हमें श्री जिनसेनाचार्यजीके कथनसे चलता है । वे लिखते है: " नमः पुराणकारेभ्यो यद्वक्राब्जे सरस्वती । येषामन्यकवित्वस्य मूत्रपातायित वचः ॥ ४१ ॥ धर्मसूत्रानुगा हृद्या यस्य वाङ्मणयोऽमलाः। कथालङ्कारतां भेजुः काणभिक्षुर्जयत्यसौ ॥५१॥" यहां पहले श्लोक द्वारा प्राचीन पुराणकारोंको नमस्कार किया है, जिनके वचनोंके आधारसे दूसरोंने ग्रंथ बनाये है और दूसरेमें काणभिक्षु नामक कविकी प्रशसा की है, जिसने कोई कथा ग्रन्थ बनाया था। इतना ही क्यों ? श्री जिनसेनाचार्यजीके पहले एक महापुराण गद्यमें श्री कवि परमेश्वर द्वारा रचा हुआ मौजूद
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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