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'प्राचीन प्रतिमायें भी इमी रूपकी हैं. किंवा विवध स्तोत्रों में इस “घटनाका उल्लेख किया हुआ मिलता है। विक्रमकी दूमर्ग शतादिके दिगम्बर जैनाचार्य श्रीसमन्तभद्रस्वामी इस घटनाका उल्लेख निम्नप्रचार करते हैं:'बृहत्फणामण्डलमण्डपेन य स्फुरत्तडिसिङ्गरुचोपर्मिणाम् । जुगृह नागो धरणो धराधर विरागसन्ध्यातडिढम्बुदो यथा ।।
इमी तरह श्री सिद्धसेन दिवाकर प्रणीत कल्याणमंदिर स्तोत्रमें भी यही उल्लेख मौजूद है: यथा:'यस्य स्वयं मुरगुरुगरिमाम्बुराशेः, स्तोत्रं मुविस्तृतमतिर्नविभु
विधातुम् । तीर्थेश्वरस्य कमठस्मयधूमकेतोस्तस्याहमेष किल संस्तवनं करिष्ये।। 'प्रारभारसम्मृतनभांसि रजांसि रोपादुत्यापितानि कमटेन शठेन
यानि । छायापि तैस्तत्र न नाथ हता हनाशो ग्रस्तस्त्वमीभिरयमेव परं
दुरात्मा ।। ३१ ।' सोमचंद्रकी कठमहोदधि (ब्वे)में भी इस घटनाका उल्लेख है। अतएव इस घटनामें संशय करना वृथा है। जन समाजमें भगवान पार्श्वनाथके सम्बन्धमें कई पवित्रस्थान
तीर्थरूपमें माने जाते हैं। सम्मेदशिखर पार्श्वनाथनी सम्बन्धी तो निर्माणस्थान होने के कारण वहुप्रख्यात् तीर्थस्थान। है; परन्तु इसके अतिरिक्त और स्थान भी
तीर्थरूपमें पूजे जाते हैं । बनारस गर्भ जन्म और केवलज्ञान स्थानरूपमें प्रसिद्ध है। किन्तु दिगम्बर संप्र- ' दायमें न नाम महिच्छत्रको किस भाषारसे केवलज्ञान स्थान माना