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theory mahes an integral part of the Vaisesika, and it is achnon lcdgeil by thc Nyanya, tho Brahmanical philosophies, which h e originated by secular scholars ( Pandits), rather than by divine or religious men. Imong the hetrodor, it has been adopted by the Jauns, and ..also by the Ajivikas ..... .. We place the Jains first because they seem to have worhed out their system from the most primitive notions about matter., -(CRE Vol. II. PP 199-200)
भावार्थ-'ब्राह्मणोके प्राचीनसे प्राचीन सैद्धांतिक ग्रंथोंमें, जैसे कि वे उपनिषदोमें बताये गये हैं, कोई भी उल्लेख अणुसिद्धान्तका नहीं है । और इसीलिये वेदान्तसूत्र में इसका खण्डन किया
गया है, जो उपनिषट्र शिक्षाओको व्यवस्थित रीतिसे बतलानेका दावा । करता है । वेदोंके समान मान्य सांख्य और योगदर्शनोंमें भी इस सिद्धान्तका कोई उल्लेख नहीं है किन्तु वैशेषिक और न्याय दर्शनोंमें यह स्वीकार किया गया है पर यह दोनों दर्शन अर्वाचीन पंडितोंकी रचनायें हैं-न कि किप्ती दैवी या धार्मिक पुरुषकी । वेद विरोधी मतोमें जैन और आजीविकोको यह सिद्धान्त मान्य था । .. जैनोको ही हम पहले मुख्य स्थान देते हैं, क्योंकि उन्होंने अपने सिद्धान्तको पुद्गल सम्बन्धी अतीव प्राचीन (most primitive) मतोंके अनुसार निर्दिष्ट किया है । ' इसतरह अणुसिद्धान्त भी जैनियोके धर्मको अत्यन्त प्राचीन सिद्ध करता है । इस अवस्थामें उसका प्रारम्भ भगवान नेमिनाथ या पार्श्वनाथ अथवा महावीरसे हुआ वतलाना कोरी शेखचिल्ली की कहानी होगी। उसका प्रारंभ जैसे कि जैनियोंकी मान्यता है, एक बहुत प्राचीन कालमें भगवान ऋषभदेव द्वारा ही हुआ था। इसी कारण प्रसिद्ध सस्कृतज्ञ विद्वान्