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________________ ९३ भगवान् महावीर नामक कर्म के बंधे हुए जीव अन्तकुल, भिक्षाकुल, तुच्छकुल, दरिदकुल, प्रान्तकुल और ब्राह्मणकुल में जन्म नहीं लेते प्रत्युत क्षत्रियकुल, हरिवंशफुल, आदि . इसी प्रकार के विशुद्ध कुलों मे जन्म लेते हैं। यहाँ पर हमें यह नहीं मगलूम होता कि कल्प सूत्र के रचयिता "विशुद्ध कुल" का क्या अर्थ लगाते हैं। क्या ब्राह्मण लोग विशुद्ध कुल के नहीं थे, इस स्थान पर मालूम होता है कि जैनियों ने ब्राह्मणों को बदनाम करने ही के लिए इस उपपत्ति की रचना की है। (२) उस समय ब्राह्मणां, जैनियो और वौद्धो के बीच में भयङ्कर संघर्ष चल रहा था । तत्कालीन प्रन्थों में इस विद्वेष का प्रतिविम्य साफ साफ दिखलाई पड़ रहा है। ब्राह्मण ग्रन्थों में जैनियों और बौद्धों को एव जैन और चौद्ध ग्रन्थों में ब्राह्मणों को बहुत ही नीचा दिखलाने का प्रयत्न किया है । सम्भवत' महावीरस्वामी के गर्म परिवर्तन की कल्पना भी इसी उद्देश्य की सिद्धि के लिये की गई हो । क्योंकि इसके पश्चात् ही हम यह भी देखते हैं कि भगवान महावीर की समवशरण सभा के ग्यारह गणधर भी ब्राहाण कुलोत्पन्न ही थे। यदि वे अशुद्ध समझे जाते तो कदाचित ननक गणधर भी न होने पाते। ___३-मालूम होता है कि भद्रबाहु स्वामी नेवहुत पीछे ब्राह्मण कुल को इन सात फुलों के साथ रख दिया है। क्योकि ब्राह्मण कुल के पहले जितने भी नाम आये हैं जैसे अन्तकुल मिताकुल, तुन्छकुल आदि के सब गुण के सूचक हैं । फिर केवल अकेला ब्राह्मण कुल ही क्यों "जाति दर्शक" रक्खा गया। इससे मालूम होता है कि भगवाहु के समय में ब्राह्मणों और जैनियों का संघर्ष
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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