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________________ भगवान महावीर पराकाष्टा पर पहुंच गया था और इसी कारण शायद उन्होंने इस नवीन उपपत्ति की रचना की थी। इस विषय मे डाक्टर हर्मन जेकोबी का मत कुछ दूसरा ही है। उनका कथन है कि, सिद्धार्थ राजा के दो गनियां थीं, पहली पटरानी का नाम त्रिशला था, यह क्षत्रिय कुलोत्पन्न थी और दूसरी को नाम "देवानन्दा" था यह ब्राह्मणी थी । भगवान महावीर का जन्म देवानन्दा के गर्भ से हुआ था। पर चूंकि त्रिशला वैशाली के राजा "चेटक" की बहन थी, और सिद्धार्थ की पटरानी भी थी, इसलिए महावीर का जन्म उसकी कुक्षि से हुआ यह प्रकाशित कर देने से एक साथ दो लाभ होते थे। पहला तो यह कि, वैशाली के समान विस्तृत राज्य से उनका सम्बन्ध और भी बढ़ हो जाता और दूसरा यह कि "महावीर' युवराज भी बनाये जा सकते थे । सम्भवतः इसी वात को सोच कर उन्होने यह वात प्रकट कर दी होतोक्या आश्वाय? इस वात की औरभी पुष्टि करने के लिये वेनिम्नांकित प्रमाण पेश करते हैं: वे कहते हैं कि "ऋषभदत्त" को देवानन्दा का पति कहने की वात बिल्कुल असत्य है, क्योंकि प्राकृतिभापा मैं किसी व्यक्ति चाचक शब्द के आगे "दत्त" शब्द का प्रयोग अवश्य होता है पर वह भी ब्राह्मणो के नाम के आगे नहीं हो सकता । अतएव "देवानन्दा" का पति "ऋपभदत" था यह कल्पना बहुत पीछे से मिलाई गई है। जेकोबी साहब की पहली कल्पना तो विशेष महत्व नहीं रखती, उनका यह कहना कि क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ की एक रानी देवानन्दा ब्राह्मणी भीथी यह बिल्कुल भूल से भरी हुई बात है। क्योंकि उस
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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