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भगवान महावीर
काल में ब्राह्मण कन्या का क्षत्रिय के साथ विवाह नहीं होता था। यह प्रथा सम्भवतः महावीर और बुद्ध के कई वर्षों पश्चात् चली थी। इसके अतिरिक्त दिगम्बरी अन्य महावीर पुराण में साफ लिखा है कि महावीर विशला से ही उत्पन्न थे। हां उनकी दूसरी कल्पना अवश्य महत्व पूर्ण और विचारणीय है।
इसमें सन्देह नहीं कि, उपरोक्त प्रमाणो मे से बहुत से प्रमाण बहुत ही महत्व पूर्ण हैं । इनसे तो प्रायः यही जाहिर होता है कि "गर्भ हरण" की घटना कवि की कल्पना ही है, पर हम एक दम ऐसा करके प्राचीन ग्रन्थों की अवहेलना नहीं कर देना चाहते। हमारा तो यही कथन है कि, इस विषय पर और उपाहोह हो । सब जैन विद्वान इस विपय को सोचें और बढ़ प्रमाणों के साथ जो निकर्म निरुल उसी को स्वीकार करें। केवल प्राचीन लकीर के फकीर या अन्धश्रद्धा के वशीभूत होकर प्राचीनता का पक्ष कर लेना भी ठीक नहीं। हर एक बात को बुद्धि की कसौटी पर अवश्य जांच लेना चाहिए । अस्तु ।
स्त्री सन् से ५९९ वर्ष पूर्व चैत्र गुहा त्रयोदशी के दिन रानी त्रिशला के गर्भ से भगवान महावीर का जन्म हुआ, जन्म के उपलक्ष्य में बहुत बड़ा उत्सव मनाया गया।
भगवान महावीर का वाल्यजीवन और यौवनकाल किस प्रकार व्यतीत हुआ इसके बतलाने में इतिहास प्रायः चुप है। पुराणों में भी बाल्यकाल और यौवनजीवन की बहुत ही कम घटनाओं का वर्णन है। अतएव अनुमान प्रमाण से इन दो अवस्थाओं का जो कुछ भी निष्कर्ष निकाला जा सकता है वह आगे के "मना वैज्ञानिक" खण्ड मे निकाला जायगा।