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भगवान् महावीर न्वयन
यहां पर एक बात बतला देना आवश्यक समझते हैं, वह यह कि श्वेताम्बरी धर्मशास्त्र भगवान महावीर का विवाह "यशोदा" नामक राजकुमारी के साथ होना मानते हैं । उनके मतानुसार भगवान महावीर को प्रियदर्शना नामक एक पुत्री थी। जिसका विवाह राजकुमार “जामालि" के साथ किया गया था। पर दिगम्बरी धर्म शाखों के मत से महावीर बाल ब्रह्मचारी थे । इन दोनो में से कौनसा मत सच्चा है इसका निर्णय करने के लिए इतिहासज्ञो के पास कोई प्रमाणभूत सामग्री नहीं है । हां अनुमान के वल पर कई मनो वैज्ञानिको ने इसका निर्णय किया है जिसका विवेचन आगामी खण्ड मे किया जायगा ।
बाल्यकाल और यौवनजीवन को लांघ कर इतिहास एकदम उस स्थान पर पहुंचता है जहां पर महावीर का दीक्षा संस्कार होता है । पिता की मृत्यु के पश्चात् तीस वर्ष की अवमा में महावीर ने दीक्षा ग्रहण की । डा० हार्नल का मत है कि, यदि जीवन के प्रारम्भ काल ही में महावीर दुईपलास नामक चैत्य में पार्श्वनाथ की सम्प्रदाय में सम्मलित होकर रहने लगे। पर उनके त्याग विषयक नियमो से इनका कुछ मत भेद हो गया यह मत भेद खास कर "दिगम्वरत्व" के वियष में था। पार्श्वनाथ के अनुयायी वस्त्र धारण करते थे और महावीर बिल्कुल नग्न रहना पसन्द करते थे। इस मत भेद के कारण कुछ समय पश्चात् वे उनसे अलग होकर बिहार करने लगे। दिगम्बर होकर उन्होने बिहार के दक्षिण तथा उत्तर प्रान्त में आधुनिक राजमहल तक १२ वर्ष तक खूब भ्रमण किया । इसके पश्चात् इनका उपनाम महावीर हुआ। इसके पूर्व में ये वर्द्धमान के नाम से प्रसिद्ध थे।