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________________ भगवान महावीर जनसकता। इसी प्रकार इसी प्रमाण पर जैनधर्म को बौद्धधर्म की शाग्वा मानना भी, हास्यास्पद ही होगा। इसके अतिरिक्त महावीर क समय में तो ये महाव्रत चार से पांच हो गये थे। सिवाय इसके जैनधर्म में तीर्थकर २४ माने गये हैं। पर बुद्ध लोग २५ घुद्धों का होना मानत हैं। इस प्रकार डाक्टर जेकोबी वगैरह विद्वानो के प्रयत्न से अब उपरोक्त विद्वानो की कल्यनाएं बिल्कुल नष्ट हो गयी हैं और सिद्ध हो गया है कि, बुद्ध और महावीर दोनों अलग अलग व्यक्ति थे। अब प्रभ रह जाता है कि, क्या महावीर ने ही जैनधर्म नामक धर्म की पहले पहल कल्पना की थो, या यह धर्म उनके भी पहिले मौजूद था। जैन शाखा में तो जैनधर्म अनादि माना गया है। उनके अनुमार महावीर के पूर्व २३ तीर्थकर और हो चुके हैं। जिन्होंने ममय समय पर इस पृथ्वी पर अवतीर्ण होकर संसार के निर्वाण के लिए सत्य धर्म का प्रचार किया। इनमें से पहले तीर्थकर का नाम ऋपभदेव था। ऋषभदेव के काल का निर्णय करना इतिहास की शक्ति के बाहर है। जैन ग्रन्थों के अनुसार वे करोड़ों वर्षों तक जीवित रहे। अतएव प्राचीन तीर्थकरों के बारे मे जैन ग्रन्थों में लिखी हुई वातों पर एका. एक विश्वास नहीं किया जा सकता। कम से कम इतिहास तो इन घटनाओं को कदापि स्वीकार नहीं कर सकता। इस स्थान पर हम ऐतिहासिक दृष्टि से जैनधर्म की उत्पति पर कुछ विवेचन करना चाहते हैं।
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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