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________________ ७२ 1 लोगों का विश्वास है कि भगवान् महावीर ही जैनधर्म के मूल संस्थापक थे । लेकिन यदि यह बात सत्य होती तो बौद्धग्रन्थो के अन्दर अवश्य इस बात का वृतान्त मिलता, पर वौद्धग्रन्थों में महावीर के लिए कहीं भी यह नहीं लिखा कि वे किसी धर्म विशेष संस्थापक थे। इसी प्रकार उनमें कहीं यह भी नहीं लिखा है कि, निमन्यधर्म कोई नया धर्म है । इससे यह सिद्ध होता है कि बुद्ध के पहले भी किसी न किसी अवस्था में जैनधर्म मौजूद था। यह बात अवश्य है कि, उनके पहिले यह बहुत विकृत अवस्था मे था। जिसका महावीर ने सशोधन किया । इधर आज कल की खोजो से यह बात सिद्ध हो गयी है कि, पार्श्वनाथ ऐतिहासिक व्यक्ति थे। डाक्टर जेकोवी आदि व्यकियो ने यह भी सिद्ध कर दिया है कि पार्श्वनाथ ही जैनधर्म के मूल संस्थापक थे । ये महावीर निर्वाण के करीव २५० वर्ष पूर्व हुए अतएव उनका समय ईसा के पूर्व आठवीं शताब्दी में निश्चय होता है । पार्श्व की जीवन सम्बन्धी घटनाओं और उपदेशों के इतिहास का वहुत कम ज्ञान है । 1 भद्रबाहु स्वामी रचित कल्पसूत्र के एक अध्याय में कई तीर्थंकरो की जीवनियां दी हुई हैं। उनमे पार्श्वनाथ की जीवनी भी है । उससे मालूम होता है कि, महावीर से २५० वर्ष पूर्व श्रीपार्श्वनाथ निर्वाण को गये । पार्श्वनाथ काशी के राजा अश्वसेन के पुत्र थे । इनकी माता का नाम वामादेवी था । तीस वर्ष तक गार्हस्थ्य सुख का उपभोग कर ये मुनि हो गये । ८३ दिन तक ये 'छदमावस्था मे रहे, और ८३ दिन कम सत्तर वर्ष तपस्या करके निर्वाणस्थ हुए। पार्श्वनाथ के समय में अणुव्रतो की संख्या भगवान् महावीर ज्य
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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