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________________ भगवान् महावीर अब लेसन,साहव का मत सुनिए उनका कथन है कि चार बड़ी - बढी बातों में जैनधर्म और वौद्धधर्म विल्कुल समान है। १-दोनों सम्प्रदाय वाले अपने अपने आचाय्यों (Prop. hets) को एक हो (अर्हत ) संज्ञा से सम्बोधित करते हैं। इसके अतिरिक्त "सर्वज्ञ" "सुगत" "तथ्यगत" "सिद्ध" “बुद्ध" "मुंबुंदह" 'प्रादि सब संज्ञाओं को दोनों धर्म वाले अपने अपने आचार्यों के लिए प्रयुक्त करते हैं। २-दोनो सम्प्रदाय वाले अपने अपने निर्वाणस्थ-प्राचार्यों को देवनाओं के समान पूजते हैं, उनकी मूर्तिया और मन्दिर बनान है। दोनो ही मम्प्रदायो का मुख्य सिद्धान्त "अहिंसा" है। और दोनों की काल प्रणाली में भी वहत कुछ साम्य है। ४-जैन श्रमणो और बौद्ध श्रमणों के चरित्रों में भी बहुत माम्य पाया जाता है दोनों ही चार महानत के पालक होते हैं। इन चारों दलीलों के आधार पर मि० लेसन यह सिद्ध करने को कोमिश करते हैं कि जैनमत भी बौद्धमत की ही एक शाखा है। लेकिन लसन साहब के ये मत भी उतने ही भ्रम पूर्ण हैं जितने कि विल्सन साइव के। यह बात सत्य है कि "अर्हत" आदि शब्दवौद्ध और जैन दोनों धमों में मिलते हैं। पर "जिन" "श्रमण" श्रादि शब्द जो कि जैन शाखों में मुख्यतय, प्रयुक्त किये जाते हैं। बौद्ध अन्यों में नहीं पाये जाते। इसके अतिरिक्त 'तभ्यगत' 'तीर्थकर' शब्द को यद्यपि दोनो ही व्यवहृत करते है, पर भिन्न भिन्न रूप में। जैनधर्म के तीर्थकर शब्द का प्रयोग
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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