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का सातवाँ अध्याय -
क्या महावीर जैनधर्म के मूल संस्थापक थे ?
अभी बहुत समय नहीं हुआ है, केवल बीस पच्चीस वर्षों Laurकी बात है जनेतर विद्वानोका प्राय. यह विश्वास था कि जैनधर्म बौद्धधर्म की ही एक शाखा है, और महावीर भी बुद्ध के एफशिष्य थे। इस मत के प्रचारको में खासकर लेसन, बंबर और विल्सन का नाम लिया जा सकता है। यद्यपि इनलोगों का यह भ्रम अव दूर हो गया है, और डाक्टर हार्नल
और डाक्टर हर्मन जेकोबी नामक दो जर्मन विद्वानो के प्रयत्न में अब सब लोग जैनधर्म को एक स्वतन्त्र धर्म स्वीकार करने लगा गये हैं, तथापि पाठको के मनोरजनार्थ इस स्थान पर उन लोगों के मत का उल्लेख करदेना आवश्यक है, जिसके कारण वे जैनधर्म को बौद्धधर्म की एक शाखा मानते थे।
विल्सन साइव का खयाल था कि, जैनधर्म बौद्धधर्म की ही एक शाखा है। यह शाखा ईसा की दशवीं शताब्दी मे वौद्धधर्म का बिल्कुल नाश होने पर निकली है । ब्राह्मण जब यहा से बौद्धों को निकालने लग गये तो बचे हुए बौद्ध जाति भेद स्वीकार करके जैनी हो गये और निकाले जाने से बच गये । इसके अतिरिक्त उपरोक्त साहव का यह भी कथन है कि, बुद्ध और महावीर के