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भगवान महावीर
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वैदिक धर्म को ही लीजिए पहले कितनी बढ़ नीव पर इसकी इमारत खड़ी की गई थी, इस धर्म के द्वारा संसार को कितना दिव्य सन्देश मिला था, पर आगे जाकर व्याही समाज के तत्वो मे अन्तर आने लगा। त्याही इसमें कितने फिरके हो गये और वे आपस में किस प्रकार रक्त बहाने लगे। मुसलमान धर्म को लीजिए शिया और सुन्नी के नाम पर क्या उसमें कम खून खरावा हुआ है। ईसाई धर्म में क्या रोमन कैथालिक और प्रोटेस्सेण्ट के नाम पर कम अत्याचार हुए हैं, मतलव यह कि प्रकृति का यह नियम सब स्थानों पर समान रूप से काम करता रहता है । अव एक ही धर्म के अन्दर इस तरह फिरके उत्पन्न हो कर आपस में लड़ते है । तब जैन और वौद्ध-धर्म तो अलग अलग धर्म थे इनमे यदि संघर्ष पैदा हो तो क्या आश्चर्या । ___मतलव यह कि आगे जाकर जैन और बौद्ध धर्म मे खून ही जोर का सघर्ष चला। जैन ग्रन्या मे वौद्धों की और बौद्ध ग्रन्थ मे जैनियों की दिल खोल कर निन्दा की गई। उसके कुछ उदाहरण लीजिए 1.
दिगम्बर सम्प्रदाय मे "दर्शनसार" नामक एक अन्ध है । इसके लेखक देवानन्द नाम के कोई आवार्य हैं। यह ग्रन्थ सन् ९९० ईस्वी में उज्जैन के अन्दर लिखा गया है । इस ग्रन्थ मे लेखक ने बुद्ध धर्म की उत्पत्ति का बड़ा ही मनोरंजक या यो कहिये कि हास्यास्पद उल्लेख किया है। इस ग्रन्थ में लिखा है कि, "भगवान पार्श्वनाथ" "और भगवान महावीर" के समय के दर्मियान पार्श्वनाथ स्वामी के शिष्य पिहिताश्रम नामक मुनि का "युद्ध