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छठवां अध्याय।
जैन और बौद्ध-धर्म में संघर्ष यद्यपि "भगवान महावीर" और "भगवान बुद्ध" दोनों ने एक
साथ ही इस कर्म भूमि पर अवतीर्ण होकर एक साथ
ही कार्य किया था। एवं जैन और बौद्ध-धर्म का प्रफाश भी एक ही साथ समाज में फैला हुआ था। और एक ही उद्देश्य को लेकर दोनो धम्मों का विकाश हुआ था तथापि भाग जाफर दैव दुर्वियोग से इन दोनों धर्मों में पारस्परिक वैमनस्य फैल गया था। एक ही उद्देश्य से उत्पन्न हुए दोनो बंधु परस्पर में ही लडने लगे जिसका परिणाम यह हुआ कि, समाज में इन दोनों धर्मों के प्रति फिर से हीनता के भाव दृष्टि गोचर होने लगे और मृतप्रायः वैदिक धर्म पुनर्जीवित होने लगा।
प्रकृति का यह नियम केवल जैन और यौद्ध-धर्म के ही लिए पैदा नहीं हुआ था। सभी धर्मों में यह सनातन नियम चलता रहता है। जहाँ तक समाज जागृतावस्था में रहता है वहाँ तक कभी नए नियम की विजय नहीं हो सकती। पर ज्याही समाज कुछ सुप्तावस्था में होने लगता है त्योंही यह नियम जोर शोर से अपना कार्य करने लगता है। इसका उदाहरण जगत का प्राचीन इतिहास है।