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________________ भगवान् महावीर नास्ति) कर सकता है, पर एक ही काल और एक हो दृष्टि से कोई मनुष्य वस्तु के अस्तित्र और नास्तित्व के विधान करने की इच्छा रखता हो तो उसे "त्याद-अवक्तव्य." कहना पड़ेगा, सनय के "अनेयवाद' और जैनियों के स्याद्वाद में सब से बड़ा और महत्व का अन्तर यही है कि जहाँ सञ्जय किसी भी वस्तु का निर्णय करने में सन्देहाश्रित रहता है, वहाँ स्याद्वाद विल्कुल निश्चयात्मक ढङ्ग से वस्तुतव का प्रतिपादन करता है। ___ जेकोबी महाशय का कथन है कि, ऐसा जान पड़ता है उस समय में अजेयवादियों के सूक्ष्म विवेचन ने बहुसंख्यक आदमियों को भ्रम में डाल रक्खा था, इस भ्रमजाल से उन सवा को मुक्त करने के निमित्त ही जैन-धर्म में स्याद्वाद के क्षेम-मार्ग की योजना की गई थी। इस अद्भुत तत्र ज्ञान के सामने आकर सन्जयवादी खुद अपने ही प्रति पक्षो हो जाते थे। इस दर्शन के प्रताप ही के अजयवादियों के मत का पूर्ण खण्डन करने की सामर्थ्य लोगों में आगई। नहीं कहा जा सकता कि, इस शान के प्रताप से कितने ही अज्ञानवादिया ने जैन-धर्म की शरण ली होगी। कोत्री महाशय के इस अनुमान में सत्य का कितना अंश है इसके विषय में कुछ भो निश्चय नहीं कहा जा सकता।
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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