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________________ भगवान् महावीर नहीं है" यदि तुम पूछोगे कि "क्या वह अवस्था उस प्रकार की है । तो भी यही कहूँगा कि "यह मेरा विषय नहीं"क्या वह इन दोनों से भिन्न है ? तब भी यही कहूँगा कि यह मेरा विषय नहीं । इसी प्रकार मृत्यु के पश्चात् तथागत की स्थिति रहती है, या नही ? रहती है ? यह भीनही! नही रहती है ? यह भी नही । इस प्रकार के तमाम प्रश्नो का वह यही उत्तर देता है, इससे जान पड़ता है कि, अज्ञेयवादी किसी भी वस्तु के अस्तित्व और नास्तित्व के सम्बन्ध मे सब प्रकार की निरूपण पद्धतियों की जांच करते थे। इस जांच पर से भी जो वस्तु उन्हें अनुभवातीत मालूम होती है तो वे उसके विषय मे कहे गये सव मतों के कथन को अस्वीकृत करते थे। __जर्मनी के प्रसिद्ध विद्वान् डा० हर्मन जेकोबी का मत है कि सञ्जय के इसी “अज्ञेयवाद" के विरुद्ध महावीर ने अपने प्रसिद्ध "सप्तभङ्गीन्याय" को सृष्टि की थी। अज्ञेयवाद बतलाता है कि, जो वस्तु हमारे अनुभव से अतीत है, उसके विषय मे उसके अस्तित्व ( यह है ) नास्तित्व ( यह नहीं है) युगपत् अस्तित्व (है और नहीं है ) और युगपत् नास्तित्व (नहीं है और है) का विधान और निषेध नहीं किया जा सकता । उसी प्रकार-पर उससे बिल्कुल विपरीत दिशा में दौड़ता हुआ "स्याद्वाद दर्शन" यह प्रतिपादित करता है कि, एक दृष्टि से (अपेक्षा से) कोई पुरुष वस्तु के अस्तित्व का विधान (स्यादस्ति) कर सकता है और दूसरी दृष्टि से वह उसका निषेध भी कर सकता है, और उसी प्रकार भिन्न भिन्न काल में वह वस्तु के अस्तित्व तथा नास्तित्व का विधान भी (स्यादस्ति- .
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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