________________
४५
भगवान् महावीर
शीलन करने वालों की संख्या बढ़ने लगी, इनके अध्ययन से लोगों ने और कई तत्त्वज्ञान निकाले । किसी ने इन उपनिषदो से अद्वैतवाद का अविष्कार किया किसी ने विशिष्टाद्वैत का और किसी ने द्वैतवाद का । लेकिन यह स्मरण रखना चाहिये कि ऐसे लोगों की मख्या उस समय समाज मे बहुत ही कम थी और समाज में इनकी प्रधानता भी न थी । मतलब यह है कि महावीर के
भारत में कई मत मतान्तर प्रचलित हो गये पर प्रधानतया उपरोक्त तीन प्रधान विचार प्रवाह भगवान् महावीर के पूर्व समाज में प्रचलित हो रहे थे । इनके अतिरिक्त टोने, टुटके भूत, चूड़ैल आदि बातों के भी छोटे छोटे मत मतान्तर जारी थे, पर लोगों का हृदय जिस प्रश्न का उत्तर चाहता था, जिस शका का वह समाधान चाहता था, जिस दुख की निवृति का वह मार्ग चाहता था यह उपरोक्त किसी भी मत से न मिलता था ।
लोग इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए इच्छुक थे कि समार में प्रचलित इस दुख का और अशान्ति का प्रधान कारण क्या है |
यानिक कहते थे कि देवताओं का कोप ही संसार की अशान्ति का प्रधान कारण है । इस अशान्ति को मिटाने के लिए उन्होंने देवताओ को प्रसन्न करना आवश्यक बतलाया और इसके लिए पशु-यज्ञ की योजना की । हठयोगवादियो ने इस दुग्य का मुख्य कारण तपस्या का अभाव बतलाया । उन्होने कहा कि तपस्या के द्वारा मनुष्य अपने शरीर और इन्द्रियो पर अधिकार कर सकता है और इन पर अधिकार होते ही अशान्ति