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भगवान् महावीर
चारों के कुछ दृश्य हमें बौद्ध और जैन ग्रन्थो में देखने को मिलते हैं।
"चित्त सम्भूत जातक" नामक ग्रन्थ में लिखा है कि, एक समय ब्राह्मण और वैश्य वश की दो त्रियां एक नगर के फाटक से निकल रही थीं, रास्ते में उन्हें दो चाण्डाल मिले । चाण्डालदर्शन को उन्होने अप शकुन समझा। घर आकर उन्होंने शुद्ध होने के लिए अपनी आंखो को खुव धोया, उसके बाद उन्होंने उन चाण्डालों को खूब पिटवाया, और उनकी अत्यन्त दुर्गति करवाई।
"मातंग जातक" तथा "सत् धर्म जातक" नामक बौद्धग्रन्थो से भी पता चलता है कि उस समय अछूतों के प्रति बहुत ही घृणित व्यवहार किया जाता था । ऐसा भी कहा जाता है कि उस समय यदि कोई ब्राह्मण वेद मंत्र का पाठ करता था और अकस्मात् अगर कोई शूद्र उसके आगे से होकर निकल जाता था तो उसके कानो मे कीलें तक ठुकवा दी जाती थीं। ____कहने का मतलब यह है कि ब्राह्मणों के ये कर्म सर्व-साधारण को बहुत अखरने लग गये थे। अप्रत्यक्ष रूप से लोगों के हृदय मे ब्राह्मणों के प्रति बहुत घृण के भाव फैल गये थे। और यही कारण है कि उस समय के ब्राह्मण-ग्रन्थों में बौद्ध लोगों की, और बौद्ध तथा जैन धर्म-शाखों में ब्राह्मण वर्ग की खुब ही निन्दा की गई है,। बौद्ध और जैन ग्रन्थों में ब्राह्मण का स्थान क्षत्रियों से नीचे रखा गया है और उनका उल्लेख अपमानपूर्ण शब्दो मे किया है। कल्पसूत्र नामक भगवान महावीर के पौराणिक जीवन-चरित में लिखा है कि अर्हत आदि उच्च पुरुष