________________
૨૮
भगवान् महावीर हाथ में सारे समाज की सत्ता का भार दे दिया गया। लेकिन इसके साथ ही वे उस सत्ता में लिप्त न हो जाय-उसका दुरुपयोग न करने लग जाय इसलिये यह नियम रखा गया कि वे अपने लिए कुछ भी सम्पति उपार्जन न कर सके। इसके अतिरिक्त वे जो कुछ भी सोचें, समाज मे जो कुछ भी सुधार करना चाहे, राजा के द्वारा करवायें। वे ऐश्वर्य और विलास से हमेशा विरक्त रहे । यह विधान उनके लिए रख कर क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र तीनों वर्ण उनके अधिकार में कर दिये गये।। ____ यही वर्णाश्रम-धर्म का उद्देश्य है । इसमें कोई सन्देह नहीं कि हमारे पूर्वजों ने बहुत ही गहरे पेठ कर समाज की इस व्यवस्था-प्रणाली का आविष्कार किया। और जहाँ तक समाज के अन्दर ब्राह्माणों ने निस्वार्थ भाव से तीनों वर्गों पर शासन किया, वहां तक यहां के समाज का व्श्य अत्यन्त सुन्दर रहा । पर देव-दुर्वियोग से या यों कहिये कि मनुष्य-प्रकृति की कम. जोरी से ब्राह्मणो के मस्तिष्क मे भौतिक-स्वार्थ का कीड़ा घुसा। अध्यात्मिकता की जगह वे भी भौतिकता मे रमण करने लगे। बस फिर क्या था, सत्ता तो उनके पास थी हो, वे मनमाने ढग से अपने नीचे वाले वर्षों पर अत्याचार करने लगे। फल स्वरूप समाज मे भयंकरक्रान्ति मच गई। कुछ समय तक तो क्षत्रिय भी ब्राह्मणों के हाथ की कठ पुतली बने रहे, और उनके अत्याचारों मे योग देते रहे, पर आगे जाकर वे भी इनसे घृणा करने लग गये, ब्राह्मणों के अत्याचार और बढ़ने लगे। भगवान् महावीर
और बुद्धदेव के कुछ पूर्व ये अत्याचार बहुत बढ़ गये थे इनके कारण समाज में भयङ्कर त्राहि त्राहि मच गई थी, इन अत्या