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भगवान महावीर
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"और उज्ज्वल बना कर नहीं रह गये, उन्होंने संसार को उस दिव्य-तत्त्व का-उस उदार मत का सन्देश दिया जिसके अनुसार चलकर एक हीन से हीन व्यक्ति भी अपना कल्याण कर सकता है। मनुष्य जाति के सम्मुख उन्होंने ऐसे दिव्य और कल्याणकर मार्ग को रक्खा जिससे संसार में स्थायी शान्ति की स्थापना की जा सकती है।
लेकिन आज यदि हम भगवान महावीर के अनुयायी जैन समाज की स्थिति को देखते हैं, यदि आज हम उसके द्वारा होने वाले कर्मों का अवलोकन करते हैं तो उसमें हमें एक भयङ्कर विपरीतता दृष्टि गोचर होती है। हाय, कहां तो भगवान महावीर का उन्नत, उदार और दिव्य उपदेश और कहां आधुनिक जैन समाज !!
जिन महावीर का उपदेश आकाश से भी अधिक उदार और सागर से भी अधिक गम्भीर था उन्ही का, अनुयारी जैन समाज आज कितनी सङ्कीर्णता के दल दल में फंस रहा है, जो "वर्द्धमान" अपने अलौकिक वीरत्त्व के कारण "महावीर" कहलाएँ उन्हीं महावीर की सन्तान आज परलेसिरे की कायर हो रही हैं, जिन महावीर ने प्रेम और मनुष्यत्व का उदार सन्देश मनुष्य जाति को दिया था उन्ही की सन्ताने आज आपस में ही लड़ झगड़ कर दुनियाँ के परदे से अपने अस्तित्व को समेटने की तैयारियाँ कर रही हैं। कहां तो महावीर का वह दिव्य उपदेश
सब्वे पाणा विया उया, सुहसाया, दुवख पढ़िकूला भाप्यियवहा । पिय जीविणो, जीविकामा सम्वेसि जीवियं पियं ।