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भगवान् महावीर
"पतितं विस्मृतं नष्टं स्थितं स्थापित माहितम् । तं नाददीतस्वं परकीयं चिद सुधी ॥ " स्वाद डालना, ताला तोड़ना, जेबकटी करना, खोटे वाट, नोल रखना, कम देना, ज्यादा लेना आदि और ऐसी करना जो राज नियमों में अपराध बताई गई हो। गस्त में पड़ी हुई चीज को उठा लेना, किसी के जमीन मे गढ़े हुए धन को निकाल लेना और किसी की धरोहर पचा लेनाइन बातों का इस व्रत में पूर्णतया त्याग करना चाहिये ।
चोरी नहीं किसी की
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स्थूल मैथुन विरमण - इस व्रत का अभिप्राय है, पर ख का त्याग करना, वैश्या, विधवा, और कुमारी की संगति ने दूर रहना तथा जिस बात में जीवों का संहार होता हो, ऐसा पापमय व्यापार नहीं करना ।
अनर्थ दंड विरमण - इसका अर्थ है विना मतलब दडित होने से - पराप द्वारा बंधने से बचना । व्यर्थ खराव ध्यान न करना. व्यर्थ पापांपदेश न देना और व्यर्थ दूसरो को हिंसक उपकरण न देना, इस व्रत का पालन है । इनके अतिरिक्त, बेल तमाशे देखना, गप्पें लड़ाना, हसी दिल्लगी करना आदि प्रमादाचरण करने से यथाशक्ति बचते रहना भी इस व्रत में श्रा जाता है ।
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सामायिक व्रत - राग द्वेप रहित शान्ति के साथ मे दो घड़ो यानी ४८ मिनिट तक आसन पर बैठने का नाम सामयिक है । इस समय में आत्मतत्व का चिन्तन, वैराग्यमय शास्त्रों का परिशीलन अथवा परमात्मा का ध्याय करना चाहिये ।
देशावकाशिक व्रत - इसका अभिप्राय है छठे व्रत में ग्रहण