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भगवान महावीर
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लकी
कल्याण उन्हीं
मनुष्य को मनुष्यता इसी में है कि वह अपनी लागणियों को अपने जज्बों को दया से दवा रक्खे । जगत का लोगो से होता है जो उदार हृदय वाले होते हैं। दयाहीन स्वार्थी लोगो का दौरदौरा होता है उस काल में प्रजा को जो दुःख उठाने पड़ते हैं वे इतिहास के वेत्ताओं से छिपे नही है ।
जिस काल में
इसलिए जैन शास्त्रों में गृहस्थ धर्म का वर्णन करते हुए कहा है कि:-गृहस्थ को जान बूझ कर संकल्प पूर्वक किसी त्रस्त जीव को न मारना चाहिये न सताना चाहिये । बिना किसी प्रयोजन के किसी भी आत्मा को खेद पहुँचे इस प्रकार के दुर्वचन न कहना चाहिये ।
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स्थूल मृषावाद विरमरण-जो सूक्ष्म असत्य से बचने का व्रत नहीं निभा सकते हैं - उनके लिए स्थूल (मोटे) असत्यो का त्याग करना बताया गया है। इसमे कहा गया है कि, कन्या के सम्वन्ध में, पशुओं के सम्बन्ध में, खेत कुत्रों के सम्बन्ध मे और इसी तरह की और बातों के सम्बन्ध मे झूठ नहीं बोलना चाहिये | यह भी आदेश किया गया है कि दूसरो की धरोहर नहीं पचा जाना चाहिये, झूठी गवाही नहीं देनी चाहिये, और जाली लेख- दस्तावेज नहीं बनाने चाहियें ।
स्थूल अदत्तादान विरमण - जो सूक्ष्म चोरी को त्यागने का नियम नही पाल सकते उनके लिये स्थूल चोरी छोड़ने का नियम बताया गया है । स्थूल चोरी में इन बातो का समावेश होता है: